३४. यूसुफ अली और स्त्री-शिक्षा
श्री यूसुफ अलीने भारतकी हालतके सम्बन्धमें एक पुस्तक लिखी है। वह बहुत ही प्रसिद्ध है। उसमें उन्होंने स्त्री-शिक्षाके बारे में जो विचार व्यक्त किये हैं वे जानने योग्य है। उन्होंने लिखा है कि जबतक भारतमें स्त्रियोंको आवश्यक शिक्षा नहीं मिलती तबतक भारतकी हालत सुधर नहीं सकती। स्त्री पुरुषकी अर्धांगिनी मानी जाती है। यदि हमारा आधा शरीर मुर्दा हो जाये तो हम मानते हैं, हमें लकवा हो गया है, और हम बहुत से कामोंके लिए अयोग्य हो जाते हैं। तब स्वीका जो उपयोग होना चाहिए वह न हो, तो सारे भारतको लकवा हो गया है, यही मानना पड़ेगा। और ऐसी हालतमें यदि भारत दूसरे देशोंके आगे टिक न सके तो उसमें आश्चर्यकी बात कौनसी है? इस तरहका विचार हर माता-पिताको अपनी लडकीके बारेमें और सारे भारतवासियोंको स्त्री-समाजके बारेमें करना चाहिए। हमें ऐसी हजारों स्त्रियोंकी जरूरत है जो मीराबाई और राबियाबीकी बराबरी करें।
इंडियन ओपिनियन, २२-६-१९०७
३५. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
चट्रान्सवालकी संसद
नई संसदका दूसरा सत्र १४ तारीखको प्रारम्भ हुआ। स्थानीय सरकारके कामके ढंगके बारेमें जनरल बोथाने जो भाषण दिया है, वह भारतीय समाजके लिए समझने योग्य है। इसलिए उसका मुख्य हिस्सा नीचे देता हूँ।
चीनी जानेवाले हैं
इस समयके गिरमिटिया चीनियोंको गिरमिट पूरा हो जानेपर वापस भेज दिया जायेगा और बदलेमें दूसरे गिरमिटिया चीनियोंको नहीं आने दिया जायेगा। इस हिसाबसे देखनेपर इस वर्षके अन्तमें १६,००० चीनी ट्रान्सवाल छोड़ेंगे और जो बचेंगे वे लगभग १९०७ के अन्ततक चले जायेंगे।
चीनियोंके बदले कौन?
चीनियोंके चले जानेसे खानोंमें मजदूरोंकी तंगी होगी। इसका उपाय एक तो यह है कि जहाँसे भी मिलें वहाँसे काफिरोंको जुटाया जाये और उनके द्वारा काम कराया जाये। इसके लिए पुर्तगीज़ सरकारसे बातचीत चल रही है। दूसरा उपाय यह है कि जैसे-तैसे गोरे मजदूरोंको खानोंमें काम करनेके लिए प्रोत्साहित किया जाये और अन्तमें ट्रान्सवालको सफेद बनाया जाये। गोरे मजदूर कम वेतनपर काम कर सकें, इसके लिए ट्रान्सवाल चुंगी (कस्टम) के
[१] यह १९०८ के बदले भूलसे दे दिया गया है। देखिए “जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ५९।
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