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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

आशा करता हूँ कि बिना अनुमतिपत्रवाले भारतीयोंको फिलहाल ट्रान्सवालमें आनेसे रोकनेके लिए डर्बन अब भी कुछ और समय तक पूरी कोशिश करेगा।

फोक्सरस्टके भारतीय

फोक्सरस्ट समितिने संघको तार द्वारा ७ पौंड जनवरीमें भेजे हैं। इसका विवरण निम्न लिखित है:

श्री मुहम्मद सुलेमान, ३ पौंड श्री हुसेन सुलेमानकी कम्पनी (पारख), २ पौंड; सर्वश्री सुलेमान मूसाजी मंगेरा, इब्राहीम मुहम्मद जादवत और मूसा सुलेमान, प्रत्येकके १० शिलिंग; श्री असमाल अहमद कानमवाला और श्री अहमद इब्राहीम हासरोडके ५-५ शिलिंग; कुल ७ पौंड। यह विवरण पहले दिया जाना चाहिए था, परन्तु नहीं दिया जा सका। इसका मुझे खेद है।

नया पंजीयन

नये पंजीयनके लिए नीचे लिखी खाना-पूरी करनी होगी: नाम, कौम, आयु, ऊँचाई, हुलिया, पंजीयकके हस्ताक्षर, पंजीयनकी तिथि, पंजीयन करानेवालेके हस्ताक्षर और दायें हाथका अंगूठा। इसके बाद, नीचे पत्नीका नाम, पता, और सोलह वर्षसे नीचे के बच्चों तथा सोलह वर्षसे नीचेके अल्पवयस्कोंका नाम, आयु, पता और रिश्ता। यह पंजीयन नये कानूनके अनुसार होनेवाले पंजीयनसे सर्वथा भिन्न प्रकारका है। पुराने पंजीयनके[१] अनुसार पत्नीका नाम दिया जाता है और उसके देनेसे स्त्रियोंकी परेशानी कम हो सकती है। ऊपरके पंजीयनमें नये कानूनका नाम नहीं है। स्वेच्छासे लिये गये पहले पंजीयन-प्रमाणपत्रपर नम्बर १ और बादके पंजीयनपत्रोंपर इसीके अनुसार क्रमशः नम्बर दिये जायेंगे।

स्त्रियोंके अँगूठे

फोक्सरस्टसे समाचार है कि भारतीय स्त्रियोंसे अधिकारी अँगूठे लेते हैं, और स्त्रियाँ दे देती हैं। अँगूठा देनेके बाद वे इसकी शिकायत करनेसे इनकार करती हैं। इस प्रकार डर ही उरमें हम कितना खो चुके हैं। मैं तो यही चाहता हूँ कि स्त्रियोंको ऐसी परेशानी न उठानी पड़े। गोरी स्त्रियोंको तो अँगूठे दरकिनार रहे, अँगुलियाँ भी देनी पड़ेंगी। इसका कारण है--बहुतसी बदचलन गोरी स्त्रियाँ दाखिल हो जाती हैं। यह लांछन ट्रान्सवालमें भारतीय स्त्रियोंपर लागू नहीं होता। इस कारण यदि भारतीय कौम साहसके साथ काम करे तो मैं मानता हूँ कि भारतीय स्त्रियाँ जाँच-पड़तालकी तबाहीसे बची रहेंगी। यह बात ध्यानमें रखकर इस प्रकारके जितने किस्से होते रहें, वे सब संघके पास भेजने में भूल नहीं की जायेगी, ऐसी मुझे आशा है।

पीटर्सबर्गकी जेल

पीटर्सबर्गमें, कानूनके सिलसिलेमें जो भारतीय जेल गये थे, श्री खंडेरिया उनके अनुभव लिखते हुए सूचित करते हैं कि हम लोग सब जेलमें एक साथ थे। सुविधा बहुत अच्छी थी। भोजनमें रोज दाल, चावल, शाक और घी मिलता था। मजिस्ट्रेट बड़ा भला था, इसलिए पत्र लिखनेकी इजाजत मिल गई थी। इसी प्रकार सप्ताहमें एक बार व्यापार-

 
  1. जो १८८५ के कानून ३ के अन्तर्गत जारी किया गया था।