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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पेश करेगा। परन्तु सभीको यह याद होगा कि हम हमेशा यह कहते आये हैं कि हमारी लड़ाई अँगुलियोंकी नहीं है, कानूनकी है। कानून चला गया इसलिए भारतीय तलवार अपने-आप म्यानमें चली गई।

परवानोंके विषयमें

कुछ कारणोंसे अब ऐसा प्रबन्ध हुआ है कि जिन्होंने स्वेच्छासे पंजीयन करा लिया है उनको नया कानून लागू होनेसे पहले ही परवाने दे दिये जायें। उनमें इतनी बात लिखी जायेगी कि ये परवाने संसद द्वारा स्वेच्छया पंजीयन स्वीकृत होने की शर्तपर दिये गये हैं। पहले शर्तके साथ रसीद दी जानेवाली थी; उसकी तुलनामें यह बात अधिक सन्तोषप्रद है; और यह लक्षण इस बातका जान पड़ता है कि सरकारका इरादा भारतीय कौमको दिये गये वचनका पूरी तरह पालन करनेका है।

मई ३१, १९०२

अर्जीके फार्ममें जो यह पूछा जाता है कि क्या आप ३१ मईको ट्रान्सवालमें थे, उस सम्बन्धमें बार-बार प्रश्न किये गये हैं। इसका उद्देश्य भारतीयोंका लाभ ही है। क्योंकि जो लोग मई १९०२ की ३१ तारीखको ट्रान्सवालमें रहे हों वे लोग अनुमतिपत्र अथवा उस प्रकारके किसी भी साधनके बिना पंजीयन करा सकते हैं।[१]

पंजीयन करा लेनेवाले क्या कानूनके अन्तर्गत आयेंगे?

इस प्रश्नको पूछने की जरूरत नहीं है। जनरल स्मट्सके साथ लिखित इकरार है कि जो लोग स्वेच्छासे पंजीयन करा लेंगे वे कानूनके दायरेमें नहीं आयेंगे, भले ही ऐसे भारतीय बहुत थोड़े ही हों।

नये आनेवाले लोग

नये लोग ट्रान्सवालमें दाखिल हो सकेंगे या नहीं, यह प्रश्न भी पूछा गया है। मेरी समझमें जो लोग प्रवासी कानूनके अन्तर्गत होनेवाली शैक्षणिक जाँचमें उत्तीर्ण हो सकेंगे, वे प्रवेश पा सकते हैं। परन्तु अभी विलायतसे जो "नीली-पुस्तिका" (ब्ल्यू बुक) आई है उससे पता चलता है कि ट्रान्सवालकी सरकार द्वारा लगाये जानेवाले अर्थके अनुसार प्रवासी कानूनकी धारा २ की उपधारा ४ के अन्तर्गत शिक्षित भी प्रवेश नहीं पा सकते।[२] मैं स्वयं इस अर्थको नहीं मानता। उसी प्रकार श्री ग्रेगरोवस्की[३] भी इसे स्वीकार नहीं करते। नया कानून रद करते समय यदि मेरी आशाके अनुरूप सुधार हुए तो उपधारा ४ द्वयर्थी है कि नहीं, यह प्रश्न नहीं रहेगा। उस धाराका अर्थ चाहे जो हो, मेरी निश्चित सलाह है कि नये भारतीय अथवा बिना अनुमतिपत्रवाले शरणार्थी भारतीय फिलहाल ट्रान्सवालमें आनेका विचार बिलकुल न करें। भारतीय कौमका पहला काम तीन महीनोंकी अवधिमें अपनी भलमनसाहत और प्रामाणिकता सिद्ध करना है। इसके पश्चात् जो कुछ होना होगा सो होता रहेगा। फिलहाल शिक्षित अथवा शरणार्थी ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेका लोभ करेंगे तो कौमको इससे हानि होगी, ऐसी मेरी निश्चित धारणा है। इस संघर्षमें डर्बनने बड़ी सहायता की है। और मैं

 
  1. देखिए 'पत्र: जनरल स्मट्सको', पृष्ठ ९८-१००।
  2. देखिए खण्ड ७, पृष्ठ १०३।
  3. जोहानिसबर्गके एक बैरिस्टर