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मेरे जेलके अनुभव---[१]

वहाँ ले जा रहे थे तब मेरे मनमें अनेक विचार आये। क्या मेरे साथ विशेष रूपसे शुद्ध राजनैतिक कैदी जैसा व्यवहार किया जायेगा? क्या मुझे मेरे साथियोंसे अलग रखा जायेगा? मुझे जोहानिसबर्ग जेलमें ले भी जायेंगे या नहीं? मेरे संकल्प-विकल्प शीघ्र ही निराधार सिद्ध हुए और उससे मुझे बड़ी राहत मिली। श्री नायडू और जिन अन्य सज्जनोंपर मेरे साथ मुकदमा चलाया गया, उनसे मुझे अलग रखनेकी बात नहीं थी। और न हम लोगोंके साथ किसी विशिष्ट व्यवहारकी बात थी। किन्तु साथ ही इसके बाद जो हुआ वह मेरे लिए अप्रत्याशित-सा था। हम सभी पहले आमद-घरमें ले जाये गये। जिस कमरेमें कैदियोंका नाप- तौल आदि होता है और जहाँ उनकी पोशाक बदली जाती है, उसका यही नाम है। वहाँ हमारा वजन लिया गया और हमारे सबके कपड़े उतरवाये गये और हमें सादी कैद पानेवाले कैदियोंके कपड़े दिये गये। इनमें पाजामा, कुरता, बनियान, टोपी तथा एक जोड़ी बन्द चप्पलें थीं। हम सबसे अँगुलियोंकी छापें ली गईं और करीब ४ बजे हम लोगोंको, शामके भोजनके लिए ८-८ औंस रोटी देकर अपनी कोठरीमें भेज दिया गया।

एशियाइयोंका वर्गीकरण वतनियोंके साथ

हमारी कोठरी वतनियोंके कक्षमें आती थी। हम जिस कोठरीमें रखे गये उसपर 'काले कर्जदार कैदियोंके लिए' लिखा हुआ था। यही अनुभव था जिसके लिए शायद हममें से कोई भी तैयार नहीं था। हमने तो यह आशा कर रखी थी कि हमें वतनियोंसे कहीं अलग उपयुक्त स्थान दिया जायेगा। वैसे यह कदाचित् ठीक ही हुआ कि हमें वतनियोंके वर्गमें रखा गया। इससे अब हमें वतनी कैदियोंके जीवन, रहन-सहन और रीति-रिवाजके अध्ययनका अवसर मिलेगा। मुझे यह भी अनुभव हुआ कि भारतीय समाजने सत्याग्रह संघर्ष समयसे पहले प्रारम्भ नहीं किया। भारतीयोंको वतनियोंकी श्रेणीमें रखे जानेके पीछे भारतीयोंके प्रति तिरस्कारकी भावना थी। मुझे एशियाई अधिनियम हमारी अपमानजनक स्थितिकी चरम सीमा जान पड़ा। मुझे निस्सन्देह ऐसा लगा कि यदि हमें विशेष कक्ष दिये जाते तो यह मामूली इन्सानियतकी बात होती; और मेरा विचार है कि हर पक्षपातहीन पाठकको ऐसा ही लगेगा। दोष जेल अधिकारियोंका नहीं था। इसमें दोष तो उस कानूनका था जिसमें एशियाई कैदियोंके साथ विशेष व्यवहारकी व्यवस्था नहीं की गई थी। इसमें शक नहीं कि जेलके गवर्नरने हमें कानूनकी सीमामें रहते हुए आराम पहुँचानेकी भरसक कोशिश की। चीफ वॉर्डरने, जो हेड वॉर्डर भी था और जो हमारा पहला अफसर पड़ता था, गवर्नरकी भावनाको पूरी तरहसे अंगीकार तो किया, किन्तु वह हमें उस जगहके सिवा जहाँ सारे दिन, और अंशतः रातको भी, वतनी भयंकर शोर और चीख-पुकार मचाते रहते थे, कहीं और रखनेमें असमर्थ था। बहुतसे वतनी कैदी जानवरोंसे कुछ ही कम होते हैं। वे प्रायः दंगा-फसाद करते और अपनी कोठरियोंमें परस्पर झगड़ते रहते थे। गवर्नर उन थोड़े-से भारतीय कैदियोंको (सैकड़ों कैदियोंमें भारतीय कैदियोंकी संख्या मुश्किलसे आधा दर्जन थी, यह भारतीयोंके लिए कितनी प्रशंसाकी बात है) उस कक्षसे अलग नहीं रख पाया, जिसमें वतनी कैदी थे। और फिर भी यह बिलकुल साफ है कि अलग रखा जाना शारीरिक दृष्टिसे आवश्यक है। भारतीयों और अन्य एशियाइयोंके वतनियोंके साथ वर्गीकरणपर इतना आग्रह था कि हमारी बंडियोंपर, जो नई थीं और जिनपर सब छापें नहीं पड़ी थीं, 'एन' वर्ण छापा