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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पंजीयन करा चुके हों, वे भी हमसे बिलकुल अलग नहीं हैं। उन्हें इस मौकेपर पूरी-पूरी मदद करनी है।[१] हमें आशा है कि उनकी ओरसे भी खासी अच्छी रकम सहायताके रूपमें मिलेगी।

श्री रिच, जो इस सम्पूर्ण संघर्षके समय विलायतमें हमारे सच्चे योद्धा थे और जिन्होंने इसमें अपार परिश्रम किया, एक असाधारण व्यक्ति हैं और इस समय उनकी योग्यताकी कद्र करना बहुत आवश्यक है। संघने सारे दक्षिण आफ्रिकाकी ओरसे उन्हें केवल ३०० पौंड देनेका निर्णय किया है--और यह रकम बहुत ही मामूली है--क्योंकि इस समय दूसरे कामोंके कारण इससे अधिक रकम नहीं भेजी जा सकती। यह आवश्यक है कि यह रकम तुरन्त ही चली जाये; इसलिए दक्षिण अफ्रिकाके प्रत्येक उपनिवेशके नेतागण पैसा इकट्ठा करके उसे समयपर ब्रिटिश भारतीय संघ, जोहानिसबर्गको भेजनेकी कृपा करें।

आपका, आदि
ईसप इस्माइल मियाँ
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १४-३-१९०८

५६. मेरे जेलके अनुभव[२][१]

यद्यपि मेरा जेल जीवन अल्पकालिक ही था तथापि अनेक मित्रोंने मुझसे वहाँके अपने अनुभव लिखनेका आग्रह किया है। वहाँ मेरे देखनेमें कुछ ऐसी बातें आई जिन्हें यदि न्यूनाधिक स्थायी रूपमें रख दिया जाये तो वे उपयोगी हो सकती हैं। चूँकि मेरा दृढ़ विश्वास है कि जेल-यात्राका साधन स्वतन्त्रता, स्वाधीनता और सुधारके द्वार खोलनेमें प्रायः सहायक हो सकता है, इसलिए मैं जो अनुभव लिखने जा रहा हूँ वे शायद उनके लिए निरर्थक न ठहरें जो किसी सिद्धान्तके लिए कुछ असुविधाओं अथवा कमसे-कम, अपनी व्यक्तिगत स्वतन्त्रतापर कुछ प्रतिबन्ध लगनेकी परवाह नहीं करते।

शुक्रवार, १० जनवरी १९०८ के तीसरे पहर मुझे तथा सर्वश्री पी० के० नायडू, सी० एम० पिल्ले, कड़वा, ईस्टन, और फोर्तोएनको (पिछले दो सज्जन चीनी हैं) एशियाई कानून संशोधन अधिनियमके[३] अन्तर्गत पंजीयन प्रमाणपत्र न लेनेके अपराधमें दो-दो महीनेकी सादी कैदकी सजा हुई। जोहानिसबर्गमें सबसे पहले मेरा मामला पेश हुआ। सजा सुना दी जानेके बाद मुझे चन्द मिनटोंके लिए अदालतसे लगे हुए हवालाती कमरेमें रखा गया और बादमें मुझसे एक घोड़ागाड़ीमें बैठनेके लिए कहा गया। अदालतके बाहर जमा जबर्दस्त भीड़की निगाह बचानेकी गरजसे मुझे वहाँतक चुपचाप ले जाया गया था। मुझे शीघ्रतासे किलेमें ले गये। जब मुझे

 
  1. देखिए "खूनी कानूनको स्वीकार करनेवालोंसे", पृष्ठ ६२।
  2. यह गांधीजीके नामसे "इंडियन ओपिनियन के लिए विशेष" रूपसे दो किस्तोंमें प्रकाशित हुआ था। दूसरी किस्तके लिए देखिए पृष्ठ १३९
  3. एशियाई पंजीयन अधिनियम।