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आसमानी किताबसे

उपयुक्त खुराक दी जाये। इसलिए जब गवर्नरने हमसे पूछा कि क्या खूराकके बारेमें हमें कुछ कहना है तब हमने सिर्फ इतना ही कहा कि यद्यपि खुराक अनुपयुक्त है, किन्तु हम कोई मेहरबानी नहीं चाहते। दूसरे हफ्ते मकईके दलियेके साथ ८ औंस आलू अथवा सब्जी जोड़नेसे खूराकमें कुछ सुविधा हुई; और रविवारको १२ औंस मांस भी दिया गया। लेकिन हम लोगोंमें से अधिकतर व्यक्ति या तो शाकाहारी थे अथवा पशुके अपनी धार्मिक पद्धतिके अनुसार न काटे जानेके कारण उक्त मांसको ग्रहण नहीं कर सकते थे। इसलिए हमें १ पौंड सब्जी दी गई। किन्तु यह खूराक अधिक दिनों तक जारी नहीं रही।

[ अंग्रेजी से ]
इंडियन ओपिनियन, ७-३-१९०८

५७. आसमानी किताबसे

आसमानी अर्थात् "नीली" और आसमानीका मतलब "ऊपरकी" भी हुआ। हमने पिछले हफ्ते जिस किताबसे उद्धरण देनेकी बात कही थी, वह नीली[१] किताब कहलाती है, किन्तु वह ऊपरकी [ दिव्य ] किताब नहीं है। हमने उसे काली किताब कहा है और वह नारकीय जैसी जान पड़ती है। उस पुस्तकमें ८८ पृष्ठ हैं। उसका आकार फुलस्केप है। १९०७ के अप्रैलकी चार तारीखका पत्र सबसे पहले दिया गया है। उसमें चीनी राजदूतकी ओरसे लिखे गये पत्रका अधिकांश भाग हम छोड़ देंगे। भारतीय समाजकी ओरसे भेजे गये विभिन्न तार और दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिने जो पत्र आदि भेजे थे, उनको भी हम अधिकांशतः छोड़ देंगे। खूनी कानून, प्रवासी कानून आदि जो कानून उसमें आये हैं उन सबको भी हम छोड़ देंगे।

११ जुलाईको लॉर्ड सेल्बोर्न लॉर्ड एलगिनको तार करते हैं कि ट्रान्सवालकी संसद जो प्रवासी विधेयक पास करना चाहती है, उसकी मंजूरी वे तारसे भेज दें। तारमें उक्त विधेयकका सार दिया गया है। १६ जुलाईको लॉर्ड एलगिन जवाब देते हैं कि "विधेयकको तारसे मंजूरी नहीं दी जा सकती।" उन्होंने अनुभवसे यह देख लिया है कि इस प्रकारके कानूनोंको तारसे मंजूरी देनेपर [ पीछे ] कठिनाइयाँ आती हैं।

लॉर्ड सेल्बोर्नका पत्र

लॉर्ड सेल्बोर्न एशियाई कानूनके बारेमें लॉर्ड एलगिनको जवाब देते हुए तारीख २७ जुलाईको लिखते हैं:

आप अँगुलियोंके बारेमें जो कुछ लिखते हैं, स्थानीय सरकार उसे मंजूर कर सकनेकी स्थितिमें नहीं है। श्री हेनरीकी पुस्तकमें बताया गया है कि भारतमें अँगुलियोंकी छाप बहुत ली जाती है। सर लेपेल ग्रिफिनने[२], जिन्हें भारतका अनुभव है, अँगुलियोंके

 
  1. देखिए "नीली पुस्तिका", पृष्ठ १०१-०२।
  2. सर लेपेल हेनरी ग्रिफिन (१८३८-१९०८); आंग्ल भारतीय प्रशासक, सामान्यतः भारतीयोंके प्रति सहानुभूतिशील; दक्षिण आफ्रिकामें ट्रान्सवाल तथा अन्यत्र उनके हितोंके प्रबल समर्थक; ट्रान्सवालके भारतीयोंके उस शिष्टमण्डलका नेतृत्व किया जो दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके कष्टोंको लेकर लॉर्ड एलगिन और र्मालेंसे मिला था। देखिए खण्ड ६।