बारेमें आपत्ति उठाई है। इससे मुझे तो आश्चर्य होता है। मैं तो मानता कि जो एशियाई ट्रान्सवालमें कानूनके मुताबिक हैं, वे अँगुलियोंकी छाप देनेके खिलाफ आपत्ति नहीं करेंगे। किन्तु इतना निश्चित है कि उससे जाली अनुमतिपत्रोंके दलालोंका धन्धा नष्ट हो जायेगा अथवा जिन लोगोंने झूठे ढंगसे भारतीयोंको दाखिल करके बड़ी कमाई की है, उनका धन्धा भी नष्ट हो जायेगा। इसी तरह अँगुलियोंकी पद्धति चलनसे जाली ढंगसे दाखिल भारतीय यहाँ बस भी नहीं सकेंगे। यह धन्धा बहुत चला हुआ है, लोगोंने खूब पैसा कमाया है और सड़ाँधके आ घुसनेका डर है। ये बातें साथ नत्थी किये गये कागजोंसे मालूम हो जायेंगी। इतना याद रखना है कि ट्रान्सवालकी सरकारको जिस मामलेकी ठीक-ठीक जानकारी है, वही मामला साथकी टिप्पणीमें दिया गया है। मुझे विश्वास है कि ऐसे बहुत-से मामले हुए हैं जिनकी ट्रान्सवाल सरकारको खबर ही नहीं पड़ी। 'लाला' नामक भारतीयने जिस तरहके लालच अधीक्षक वरनॉन तथा कांस्टेबल हैरिसको दिये, अधिकारी वैसे लालचोंसे दूर रहें तो अच्छा। कुछ भारतीयोंने नये कानूनका विरोध किया है; उसका कारण यही है कि उस कानूनसे उनकी कमाईका धन्धा बन्द हो जायेगा और जिस ढिलाईसे वह धन्धा चल सकता है, वह ढिलाई खत्म हो जायेगी।
चैमनेकी टिप्पणी
श्री चैमने द्वारा भेजी गई रिपोर्ट से "नीली किताब" के सातसे भी अधिक पृष्ठ भरे हुए हैं। वह सारा हिस्सा जाली अनुमतिपत्र काममें लानेवालों, अनुमतिपत्रके बिना दाखिल होनेवालों, भ्रष्टाचार, अनुमतिपत्रका अँगूठा बदलवानेवालों, झूठी उमर बतानेवालों तथा अनु- मतिपत्रसे सम्बन्धित ऐसे ही अन्य धोखाधड़ीके मामलोंके तथ्योंसे भरा हुआ है। इनमें से एक-न-एक अपराध करनेके लिए १९०६ की फरवरीसे १९०७ के जूनकी २४ तारीख तक प्रायः १०० व्यक्ति गिरफ्तार बताये गये हैं। इनमें से १० चीनियोंके मामले हैं और बाकीके सारे मामले भारतीय हैं। इनमें से कुछ मामलोंके तथ्य श्री चैमने इस तरह देते हैं:
१९०७ के मई मासमें फतह मुहम्मद नामके भारतीयने एशियाई दफ्तरके श्री कोडीका पता-ठिकाना एक सिख नौकरकी मारफत प्राप्त किया। वह श्री कोडीके स्थानपर गया और डेलागोआ-बेसे दो लड़कोंको लानेके लिए अनुमतिपत्र देनेके बदले ५० पौंडकी रिश्वत देने को कहा।
१९०६ के मई मासमें शिवबख्श नामका एक व्यक्ति एशियाई दफ्तरमें आया और उसने अपने लड़के चंदमानको ट्रान्सवालसे बाहर निकालनेकी प्रार्थना की। इस बातमें तथ्य यह प्रकट हुआ कि चंदमान उसका लड़का नहीं था; बल्कि वह उसका लड़का कहकर जाली ढंगसे दाखिल किया गया था। बादमें चंदमान शिवबख्शका खून करनेपर उतारू हो गया और इसीलिए शिवबख्शने उपर्युक्त प्रार्थना की।
१९०६ के अप्रैलमें दो भारतीयोंने डेलागोआ-बेसे अनुमतिपत्र माँगे। उनके मिलनेके पहले ही उक्त भारतीय जाली अनुमतिपत्रसे दाखिल हो गये। मुकदमेके दरमियान मालूम हुआ कि उन लोगोंने उक्त अनुमतिपत्र डेलागोआ-बेसे प्राप्त किये थे। एक व्यक्तिके पास एक नोट-बुकका पता चला। उसमें अनुमतिपत्र माँगनेवालोंकी जाँच