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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हरएकको दी गई और वे उसमें रख दिये गये। इसके बाद अपनी-अपनी कोठरियोंमें पहुँचानेके पहले हरएकको ८ औंस रोटीका टुकड़ा दिया गया। फिर हमें वतनियोंकी जेलमें ले गये।

वतनी और भारतीय एक?

वहाँ हमारे कपड़ोंपर 'एन' छाप लगाई; अर्थात् हमें बाकायदा 'नेटिवों' [ वर्तनियों ] की श्रेणीमें रख दिया गया। हम सब अनेक असुविधाएँ झेलनेके लिए तैयार थे। किन्तु हमने यह नहीं सोचा था कि हमारी यह गति होगी। हमें गोरोंके साथ न रखें यह तो समझा जा सकता है, किन्तु ठेठे वतनियोंके साथ रखा जाये यह हमें असहनीय जान पड़ा। यह हालत देखकर हमने सोचा कि सत्याग्रहका संघर्ष तनिक भी गैरजरूरी अथवा असामयिक नहीं है। खूनी कानून भारतीयोंको एकदम निःसत्व बना देनेवाला है इससे यह और भी स्पष्ट हो गया।

फिर भी हमारा वतनियोंके साथ रखा जाना बहुत हद तक सन्तोषप्रद सिद्ध हुआ। उनकी हालत, उनका व्यवहार और उनका स्वभाव जाननेका अच्छा अवसर मिला। दूसरी तरह देखनेपर उनके साथ रखे जानेमें तौहीन समझना मनको ठीक नहीं लगा। फिर भी सामान्य दृष्टिसे देखें तो भारतीयोंको अलग रखना चाहिए, इसमें भी सन्देह नहीं है। हमारी कोठरियोंसे लगी हुईं वतनियोंकी कोठरियाँ थीं। उनमें और बाहरके मैदानमें वे शोरगुल मचाया करते थे। हम लोग सादी सजावाले कैदी थे, इसलिए हमारा स्थान अलग था। नहीं तो हम लोगों को उन्हींके साथ रखा जा सकता था। सख्त सजा पानेवाले भारतीयोंको वतनियोंके साथ ही रखा जाता है।

यह बात तौहीनकी है या नहीं, इसे अलग रख दें तो भी यह जोखिमसे भरी हुई है, इतना कहना पर्याप्त है। वतनी ज्यादातर जंगली होते हैं। और फिर उनमें भी जेल आने-वाले वतनियोंका क्या पूछना। वे शरारती और बड़े गन्दे होते हैं तथा उनका रहन-सहन लगभग जानवरोंका-सा होता है। एक-एक कोठरीमें पचाससे-साठ तक व्यक्ति रख दिये जाते हैं। वे कभी-कभी उन कोठरियोंमें ऊधम करते और बीच-बीचमें लड़ पड़ते हैं। ऐसी संगतमें बेचारे भारतीयोंकी क्या हालत होती होगी, सो पाठक आसानीसे समझ सकते हैं।

अन्य भारतीय कैदी

सारी जेलमें हम लोगोंके अतिरिक्त मुश्किलसे ही तीन-चार भारतीय कैदी थे। उन्हें वतनियोंके साथ बन्द होना पड़ता था। इतना हमसे ज्यादा था। फिर भी मैंने देखा कि वे प्रसन्न मनसे रहते थे, और बाहरसे यहाँ उनकी सेहत अधिक अच्छी थी। उन्होंने बड़े जेलरकी कृपा प्राप्त कर ली थी। वतनियोंके मुकाबिलेमें काम करनेमें वे अधिक तेज और होशियार थे, इसलिए उन्हें जेलके भीतर ही अच्छा काम सौंप दिया गया था। अर्थात् वे भण्डार और करघोंपर निगरानी तथा ऐसे ही दूसरे काम करते थे, जो तनिक भी नागवार अथवा नीचे दर्जेके न जान पड़ें। वे हमारे भी बड़े मददगार बन गये थे।

रहनेकी जगह

हमें एक कोठरी दी गई। उसमें तेरह व्यक्तियोंको रखने लायक जगह थी। उस कोठरीपर "काले कर्जदार कैदी" लिखा हुआ था। अर्थात् उसमें ज्यादातर दीवानी-सजायाफ्ता काले लोगोंको रखा जाता था। उस कोठरीमें हवा और उजालेके लिए दो छोटी-छोटी