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६१. मेरा जेलका अनुभव [१][१]

यद्यपि मैं तथा अन्य भारतीय केवल थोड़े ही दिनों सत्यके लिए जेलमें रहे तथापि वहाँ जो अनुभव मिला वह दूसरोंके लिए उपयोगी हो सकता है ऐसा सोचकर तथा कई स्थानोंसे ऐसी माँग हुई है इसलिए उसे यहाँ देना चाहता हूँ। जेलकी मारफत भारतीय समाजको अभी बहुत-से अधिकार पाने शेष हैं, यह भी मेरी धारणा है। इसलिए सब लोग जेलके सुख-दुःख समझें यह आवश्यक है। कई बार जहाँ वास्तवमें कोई भी कष्ट नहीं होता वहाँ हम अपने मनसे दुःखकी कल्पना कर लेते हैं। इसलिए यह बिलकुल स्पष्ट है कि हर वस्तुकी ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त कर लेनेसे लाभ ही होता है।

तारीख १० जनवरीके दोपहरको दो बार गिरफ्तारीके हमले हो चुकनेपर जेल जानेका अवसर आया। मुझे तथा मेरे साथियोंको सजा मिलनेके पहले प्रिटोरियासे तार आ गया था। उसमें यह खबर थी कि वहाँ पकड़े गये भारतीयोंको नया कानून स्वीकार न करने के कारण तीन-तीन मासका कठोर कारावास दिया गया है और उसके साथ जुर्माना भी किया गया है। जुर्माना न देनेपर और भी तीन मासकी सजाकी बात थी। यह जानकर मैं स्वयं ईर्ष्यालु हो उठा था और इसीलिए मैंने मजिस्ट्रेट से अधिकसे-अधिक सजा देने को कहा; किन्तु वह नहीं मिली।[२]

हम सबको दो मासकी सादी कैंदकी सजा दी गई। मेरे साथी थे सर्वश्री पी० के० नायडू, सी० एम० पिल्ले, कड़वा, ईस्टन और फोर्तोएन। अन्तिम दो सज्जन चीनी हैं। सजा होने के बाद दो-चार मिनटके लिए मुझे अदालतके पीछेकी हवालातमें रखा गया। इसके बाद मुझे चुपचाप एक गाड़ीमें ले जाया गया। उस समय मेरे मनमें अनेक विचार उठे। क्या मुझे किसी अलग जगहमें रखकर राजनीतिक कैदी माना जायेगा, क्या मुझे दूसरोंसे अलग कर देंगे, अथवा मुझे जोहानिसबर्गके बजाय किसी दूसरी जगह ले जायेंगे--ऐसे विचार उठ रहे थे। मेरे साथ जो गुप्तचर था वह क्षमा माँग रहा था। मैंने उससे कहा, माफी माँगनेकी कोई बात नहीं है, क्योंकि मुझे कैदखाने में ले जाना तुम्हारा कर्तव्य है।

कैदखाना

मेरी सारी कल्पनाएँ निरर्थक थीं, यह तुरन्त मालूम हो गया। मुझे भी वहाँ पहुँचाया गया, जहाँ अन्य कैदियोंको भेजा जा रहा था। थोड़ी ही देरमें दूसरे साथी भी आ गये। हम सब मिल गये। पहले तो हम सबका वजन लिया गया, फिर सबसे अँगुलियोंकी छाप ली गई; फिर सबके कपड़े उतरवाये गये और उसके बाद हमें जेलकी पोशाक दी गई। पोशाकमें काली पतलून, बंडी, बंडीके ऊपर पहना जानेवाला कुर्ता (जिसे अंग्रेजीमें जम्पर कहते हैं), टोपी और मोजे दिये गये। हमारे पुराने कपड़ोंके लिए एक-एक अलग थैली

८-९
 
 
  1. यह तथा इस मालाके शेष लेख "श्री गांधी द्वारा प्रेषित" रूपमें इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित हुए थे। देखिए पृष्ठ १३४, १४६ और १५१ भी
  2. देखिए "जोहानिसबर्गका मुकदमा", पृष्ठ ३६-३७।