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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

दरोगा कहलाता था। वह स्वयं बड़ा धार्मिक था और उसका हमारे प्रति प्रत्येक बर्ताव अच्छा सभ्यतापूर्ण होता था; यही नहीं हर कैदी मुक्तकण्ठसे उसकी प्रशंसा करता था। कैदियोंके सारे अधिकारोंकी हर तरह से पूर्ति करनेकी उसे लगन थी। कैदियोंका कोई नगण्य अपराध नजरमें आ भी जाता तो वह उसे दर-गुजर कर देता था और यह समझकर और जानकर कि ये सब वास्तवमें निर्दोष हैं, हम सबपर विशेष ममता रखता था। अपनी भावना प्रकट करनेके लिए कई बार हम लोगोंसे आकर बातचीत भी करता था।

कैदियोंकी संख्यामें वृद्धि

मैं कह चुका हूँ कि पहले हम केवल पाँच सत्याग्रही कैदी थे। १४ जनवरी मंगलवारको श्री थम्बी नायडू, जो प्रधान धरनेदार थे, और चीनी संघके प्रधान श्री क्विन आये। उन्हें देखकर सब बहुत खुश हुए। १८ जनवरीको १४ और व्यक्ति आये; उनमें समंदरखान भी था। उसे दो मासकी सजा मिली थी। शेष १३ व्यक्तियोंमें मद्रासी, कानमिया और गुजराती हिन्दू थे। वे सब बिना परवाना फेरी लगानेके अपराधमें गिरफ्तार किये गये थे और उन सबको दो-दो पौंड जुर्माना हुआ था। न देनेपर १४ दिनकी कैद थी। वे साहसके साथ जुर्माना न देकर जेल आये थे। २१ जनवरी मंगलवारको ७६ लोग और आये। उनमें दो महीनेकी सजा पानेवाला था नवाबखाँ। शेष दो पौंड जुर्माना अथवा १४ दिनकी जेलकी सजावाले थे। इनमें अधिकतर लोग गुजराती हिन्दू थे। कुछ कानमिया और कुछ मद्रासी थे। २२ जनवरी बुधवारको दूसरे ३५ व्यक्ति आये। २३ को तीन आये। २४ को एक आया। २५ को दो, २८ को छः और उसी दिन शामको अन्य चार लोग आये। फिर २९ को ४ कानमिया आये। इस तरह २९ जनवरी तक कुल मिलाकर १५५ सत्याग्रही कैदी हो गये। गुरुवार अर्थात् ३० जनवरीको मुझे प्रिटोरिया ले जाया गया था। किन्तु मुझे मालूम है कि उस दिन भी ५ अथवा ६ कैदी आये थे।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, १४-३-१९०८

६६. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

पंजीयन अभी जारी है। कुछ व्यक्ति समाजको हानि पहुँचानेपर तुले जान पड़ते हैं। उन्हें केवल अपना स्वार्थ ही दिखाई देता है। वे प्रार्थनापत्रके फार्ममें झूठी जानकारी भरते हैं। ये सब नुकसान पहुँचानेवाली बातें हैं। फिर कुछ तो यही मानते हैं कि संघर्षके अन्तमें झूठोंको भी संरक्षण मिलना चाहिए। इसके समान बड़ी भूल दूसरी कौन-सी हो सकती है। सत्यकी लड़ाईमें मिथ्या कैसे बच सकता है, यह समझमें नहीं आता। किन्तु जैसे सूर्य सच्चेकी सचाईके लिए तपता है और उससे झूठेको भी गरमी मिल जाती है, उसी प्रकार यदि भारतीयोंमें ज्यादातर भारतीय सच्चे हों, तो कुछ-एक झूठे लोगोंका भी ठीक ढंगसे बचाव होना सम्भव है। यदि अधिकांश भारतीय सच्चे साबित हो जायें, तो सरकारसे कहा जा सकता है कि जो लोग बिना अनुमतिपत्रके हैं, उन्हें परेशान न किया जाये। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि बिना अनुमतिपत्रवाले भारतीयोंने कानूनन अपराध किया है, किन्तु