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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पश्चिमके लोग पूर्वके लोगोंकी अपेक्षा सचमुच सभ्य हैं। उन्हें इस बातपर विचार करना लाजिम है और हमें यह लाजिम है कि हम ऐसी बातोंको देखकर पश्चिमकी सभ्यतापर मोहित न हो जायें। किन्तु इसके साथ-साथ यह भी याद रखना चाहिए कि पूर्वके लोग भी ऐसे निर्दय कामोंसे मुक्त नहीं रहे, और न आज हैं। आज भी पूर्वमें बहुत-से घातक आचारोंका उदाहरण मिल जाता है। कहनेका तात्पर्य यह है कि पूर्व हो चाहे पश्चिम, फेर केवल नामोंका है, घर-घर मिट्टीके चूल्हे हैं। जो रखेगा, उसीकी लाज रहेगी। सदाचारके पालनका पट्टा कोई विशिष्ट जाति लिखाकर नहीं लाई है। इसका आधार व्यक्ति है और यदि कोई उसे पालना चाहे तो प्रत्येक स्थान और वातावरण तथा स्थितिमें उसका पालन कर सकता है।

सर पर्सी फिट्जपैट्रिक [१]

उक्त महाशय प्रगतिशील दलके एक मुखिया हैं। उन्होंने अपने भाषणमें कहा है कि दक्षिण आफ्रिका गोरोंकी सम्पत्ति है, इसलिए उसमें एशियाइयोंको कुछ भाग नहीं मिलना चाहिए। इन महाशयकी मान्यता है कि यदि यहाँके काफिरोंपर भी पाबन्दी लगाई जा सके, तो बहुत अच्छा हो। यदि सर पर्सीसे पूछा जाये कि भारत किसकी सम्पत्ति है तो कौन जाने इसका क्या जवाब मिले। किन्तु सर पर्सीसे पूछनेके बजाय प्रत्येक भारतीय अपने मनमें यह सवाल करे, तो तमाम कष्ट बहुत जल्द दूर हो जायें। गत वर्षका संघर्ष हमारे पानीका माप-दंड था; यदि हममें पानी है तो सर पर्सी चाहे कुछ भी कहें, हम अन्ततोगत्वा स्वतन्त्रता और सम्मानपूर्वक रह सकते हैं। इसके बारेमें मुझे कोई सन्देह नहीं है। हम सत्यका आचरण करें और सच ही बोलें, तभी यह स्वतन्त्रता और सम्मान प्राप्त हो सकता है। चाहे जिस ढंगसे, जितने बने उतने भारतीय दक्षिण आफ्रिकामें दाखिल करानेका विचार करनेका अर्थ मान-सम्मानको नमस्कार कर लेना है।

चीनी बहिष्कार

यहाँके समाचारपत्रोंसे विदित होता है कि जापानके विरुद्ध चीनी बहिष्कारका शस्त्र काममें लाना चाहते हैं। कोरियामें जापानी कर्मचारी चीनियोंपर जुल्म करते जान पड़ते हैं। चीनियोंकी मान्यता है कि हथियारसे लड़नेके योग्य ताकत उनमें बहुत नहीं है। किन्तु वे जबतक स्वयं उनकी मदद नहीं करते, तबतक जापानी कोरियामें अथवा चीनमें अथवा किसी अन्य भागमें टिक नहीं सकते। चीनके साथ जापानका बड़ा जबरदस्त व्यापार है, इसलिए चीनियोंके हाथमें बड़ी भारी ताकत है। उस ताकतको देखते हुए उन्होंने निश्चय किया है कि जापान यदि सीधे ढंगसे न माने, तो जापानका माल बन्द कर दिया जाये। वे इस निश्चयपर अमल कर रहे हैं। इसलिए जापान भयभीत हो गया है। ऐसा प्रबल है बहिष्कारका अस्त्र। और बहिष्कार सत्याग्रहकी केवल एक शाखा है। जब एक बहिष्कार ही सैकड़ों तोपोंके मुकाबलेमें बलवान ठहर सकता है, तो सत्याग्रहकी क्या बात की जाये। हिन्दुस्तानमें भी फिलहाल अच्छे बहिष्कारका एक उदाहरण देखा गया है। वहाँ तार-घरमें काम करनेवाले तमाम लोगोंने हड़ताल कर दी और एक ही दिनमें हाहाकार मच गया। लॉर्ड मिंटोका तार छूटा कि तार-

 
  1. सर जेम्स पर्सी फिट्ज़पैटिक (१८६२-१९३१); अध्यक्ष, खान-मण्डल विटवाटर्स रेंड; संघीय संसदमें पूर्वी प्रिटोरियाके सदस्य, १९१०-२०; दक्षिण आफ्रिकापर अनेक पुस्तकोंके लेखक।