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जोहानिसबर्गको चिट्ठी

सावधान रहें, तो सारे भारतको उसका लाभ मिलेगा। किन्तु सावधान होनेके लिए हमें रूडीपूर्टके-जैसे गोरोंका उपकार मानना चाहिए।

भारतीय-विरोधी नया दल

जोहानिसबर्गमें एक नया दल पैदा हुआ है जिसका नाम "दक्षिण आफ्रिकाका अग्रगामी (फॉरवर्ड) दल" रखा गया है। उस दलने अपने विचार प्रकाशित किये हैं। उसका उद्देश्य दक्षिण आफ्रिकामें केवल गोरोंको बसानेका है। यह पक्ष चाहता है कि इस उद्देश्य की पूर्तिके लिए सारी काली जातियोंको राजनीति और निवासके मामलेमें अलग रखा जाये। काले लोगोंको कभी भी मताधिकार न दिये जायें, यह भी उसका उद्देश्य है। उसकी यह इच्छा भी है कि काले लोग दक्षिण आफ्रिकामें बिलकुल ही आने न दिये जायें और जो यहाँ हैं उन्हें धीरे-धीरे निकाल बाहर किया जाये। यह दल कुछ भी कर सकेगा, ऐसा माननेका कारण नहीं है। फिर भी इस प्रकारके लोग काली जातियोंके विरुद्ध खयाल फैला सकते हैं। गोरे हमारा जितना विरोध करते हैं हमें उससे अधिक ताकत लगाकर दक्षिण आफ्रिकामें आगे बढ़नेके लिए पूरी तरह खबरदार रहना चाहिए।

स्वार्थकी सीमा

एक तरफ तो गोरे लोग इस प्रकार भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिकासे निकाल बाहर करने की बात कह रहे हैं, दूसरी तरफ वे भारतीयोंसे जितना बने उतना लाभ उठाना चाहते हैं। यहाँके रेलवेके प्रधान इंजीनियर श्री वॉलकी मान्यता है कि ट्रान्सवालमें काफी कोयला है और उनका सुझाव है कि वह कोयला भारतमें खपाया जाये। इन भाई साहबके मनमें यह खयाल भी नहीं उठता कि ट्रान्सवालका कोयला लेनेके लिए शायद भारत कुछ शर्तें पेश करे। वे शायद यही समझते हैं कि भारतीय समाज डरपोक है; वह क्या कर सकता है? उनकी समझमें भारतीय तो बोझा ढोने-भरके लिए पैदा हुए हैं।

घातक सभ्यता

स्वार्थकी जिस सीमाकी ओर मैंने ऊपर इशारा किया है, आस्ट्रेलियासे उसका एक मौलिक उदाहरण प्राप्त हुआ है। वहीं चीनियोंके विरुद्ध काफी सख्ती बरती जा रही है। चीनी कई बार जहाजके तलघरमें छिपकर आस्ट्रेलिया तक पहुँच जाते हैं। जहाज एक छोटा-बड़ा गाँव ही होता है। उसके तहखानेमें आदमी छिप जाये, तो सम्भव है कई बार खोजनेपर भी न मिले। कोई निगाह बचाकर उसमें रह न सके, इस विचारसे आस्ट्रेलियाकी सरकारने यह हुक्म दिया है कि जहाजके तहखाने में गन्धकका धुआँ भर देना चाहिए जिससे अगर उसमें कोई चीनी छुपा हो तो धुएँसे परेशान होकर बाहर निकल आये या उसमें घुटकर मर जाये। इस प्रकार कई लोग मौतके घाट उतर भी चुके हैं। निर्लज्ज, निर्दय और स्वार्थके कारण अन्धे कर्मचारियोंको इस बातपर करुणा उत्पन्न होनी तो दूर रही, वे बड़े घमण्डके साथ चीनियोंको चालाकीसे खोज निकालनेकी बात करते हैं। अगर कोई गन्धकका धुआँ भरना बन्द करनेकी बात पेश करता है तो वह निर्दोष मनुष्योंकी जान बचानेके लिए नहीं, बल्कि केवल इस विचारसे कि तहखानेमें पड़े हुए मालका नुकसान न हो, अथवा वह खराब न हो जाये। पश्चिमकी ऐसी कितनी ही बातोंको सभ्यता कहना कठिन है। बहुत-से गोरे भी इस प्रकारके उदाहरणोंसे विचारमें पड़ गये हैं और वे अपने मनमें पूछते हैं कि क्या