१२१. नेटालमें तीन विधेयक
डॉक्टर गबिन्सने अपनी बात पूरी कर दिखाई है। सरकारी 'गजट' में तीन विधेयक प्रकाशित किये गये हैं। एक विधेयकका मंशा ३० जून १९११से भारतीय गिरमिटियोंको लाना बन्द कर देना है। प्रत्येक भारतीयको इसका स्वागत करना चाहिए। गिरमिट और गुलामीमें बहुत अन्तर नहीं है। भारतीयोंके ऐसी स्थितिमें आनेकी अपेक्षा हम उनका न आना अधिक अच्छा समझते हैं।
दूसरे दो विधेयक भारतीय व्यापारियोंके विरुद्ध हैं। एक विधेयकके अनुसार अगले सालसे ही किसी भी भारतीय व्यापारीको नया परवाना नहीं दिया जायेगा और दूसरे विधेयकके अनुसार दस सालके बाद किसी भी भारतीयको परवाना मिलेगा ही नहीं; और दस सालके बाद जो बाकी बचेंगे उनको तीन वर्षके लाभके बराबर हर्जाना दिया जायेगा।
वास्तवमें इन दोनोंमें से पहला विधेयक अधिक बुरा है, क्योंकि उसका अर्थ यह है कि कोई भी भारतीय अगले सालसे अपना धन्धा दूसरेको नहीं दे सकेगा और न एक स्थान से दूसरे स्थानमें जा सकेगा। यदि ऐसा हुआ तो दस वर्षमें कितने व्यापारी ऐसे बच रहेंगे जिन्हें हर्जाना देना पड़े? और फिर हर्जानेमें तीन वर्षका लाभ देना तो कुछ भी न देनेके बराबर है। भारतीय व्यापार नष्ट हो जायेगा और भारतीय व्यापारीका नामोनिशान मिट जायेगा।
ऐसे विधेयकोंके स्वीकृत होनेकी सम्भावना नहीं है; किन्तु यह मानकर चुप भी नहीं बैठ जाना है। प्रयत्नपूर्वक नेटालकी सरकारपर इस तरहका दबाव डाला जाना चाहिए कि वह ऐसे प्रस्तावको आश्रय ही न दे।
उपाय[१] हम बता चुके हैं और आगे इस सम्बन्धमें अधिक लिखेंगे। प्रत्येक भारतीयको इसपर भली-भाँति विचार करनेकी आवश्यकता है।
जो व्यापार करता रहा है उससे एकाएक दूसरा काम न होगा। यदि व्यापार छिन गया तो बेईमानी बढ़ेगी। ऐसे मार्गको बन्द करना प्रत्येक भारतीयका कर्तव्य है।
इंडियन ओपिनियन, ९-५-१९०८
- ↑ देखिए "नेटालमें परवाने", पृष्ठ ८४-८५। और "नेटालके परवाने", पृष्ठ २०७-८।