१२३. कैनडाके भारतीय[१]
कैनडामें भारतीयोंने जो आवाज उठाई है वह ज्ञातव्य है। हमें विनीपेगके एक मित्रने एक विशेष पत्र भेजा है। उससे मालूम होता है कि संसारके विभिन्न भागोंमें रहनेवाले भारतीयोंमें राष्ट्रीय भावनाका उदय हो रहा है। जिन लोगोंने सभा की, कष्ट उनके ऊपर नहीं आया था। कुछ भारतीय हाँगकांगसे [कैनडा] आये थे। कैनडाकी सरकारने उनको उतरनेकी स्वीकृति नहीं दी; इसलिए कैनडाके भारतीयोंने सभा की। सभामें जो लोग आये उनमें बहुत बड़ी संख्या सिक्खोंकी[२] थी। उन्होंने गुरुद्वारेमें सभा की और उसमें बहुत उत्साह प्रकट किया। सभामें एक प्रस्ताव यह स्वीकार किया गया कि यदि कैनडा आये हुए भारतीयोंको वापस जाना पड़ा तो उससे अंग्रेजी राज्यको धक्का लगेगा। लोगोंने यह भी कहा कि उससे [ भारतमें ] अंग्रेजी राज्यके विरोधियोंको उत्तेजन मिलेगा तथा [ बादमें इस आशयका ] प्रस्ताव पास किया गया। अखवारके संवाददाताने आगे यह भी बताया है कि सभामें बहुत जोशीले भाषण दिये गये।[३]
ऐसी सभाएँ और [प्रवासी] भारतीयोंमें आती हुई इस प्रकार एकता भारतीयोंके उज्ज्वल भविष्यके लक्षण माने जा सकते हैं।
ब्रिटिश सरकारका कर्तव्य बहुत कठिन हो गया है। उसको बहुत सावधानी बरतनी होगी। उसे एक ओर उपनिवेशोंको प्रसन्न रखना है और दूसरी ओर भारतीय लोगोंके हितोंकी रक्षा करनी है। श्री मॉर्लेकी पूरी परीक्षा है।
इंडियन ओपिनियन, ९-५-१९०८
१२४. केपका प्रवासी कानून
केपमें एक गोरेके मामलेमें सर्वोच्च न्यायालयने निर्णय दिया है कि केपके कानूनमें किसीको निर्वासित करनेका विधान नहीं है। इसलिए गोरेको निर्वासित करनेकी जो आज्ञा दी गई थी, वह रद कर दी गई और उसे छोड़ दिया गया। यह निर्णय बहुत महत्त्वका नहीं है, फिर भी जानने योग्य है। न्यायाधीशके निर्णयसे ऐसा लगता है कि अब दूसरा कानून बनाया जायेगा।
- ↑ देखिए "कैनडाके भारतीय", पृष्ठ १९९ और "रोडेशियाके भारतीय", पृष्ठ २५७-८ भी।
- ↑ विनीपेगके फ्री प्रेसकी रिपोर्टके अनुसार जिन ५०० व्यक्तियोंने सभा की वे हिन्दू थे।
- ↑ समाने भारत-मन्त्री जॉन मॉर्लेको तार भी भेजा था, जिसमें बड़ी सरकारसे संरक्षणकी प्रार्थना की गई थी और इशारा किया गया था कि इस समस्याकी अवहेलनासे भारतमें क्षोभ फैलेगा।