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१२८. एक सत्यवीरकी कथा [६]

पिछले सप्ताह गलतीसे सूचित कर दिया गया था कि यह लेखमाला पूरी हो गई है, किन्तु वहाँ सुकरातने अपना बचावका भाषण पूरा किया था और उसे बहुमतसे अपराधी माना गया था। इसके बाद सुकरातने इस विषयपर बोलना शुरू किया कि उसे क्या सजा दी जानी चाहिए।[१] उसने कहा:

आपने मुझे अपराधी ठहराया है, इससे मैं दुःखी नहीं होता। फिर आपका निर्णय अकल्पित नहीं है। मुझे आश्चर्य तो यह होता है कि इतने अधिक लोगोंने मेरे पक्षमें मत दिया। मैं मानता था कि मेरे विरुद्ध बहुत अधिक मत दिये जायेंगे। लेकिन उसके बजाय मैं देखता हूँ वे बहुत कम हैं। यदि तीन[२] और व्यक्ति मेरे पक्षमें मत दे देते तो मैं छूट ही जाता। फिर मैं देखता हूँ कि मुझपर देवताओंको न माननेका जो आरोप लगाया गया था उससे मैं मुक्त कर दिया गया हूँ।

अब आप मुझे मृत्यु दण्ड दे सकते हैं। इस सम्बन्धमें मैं क्या कहूँ? मैं चुप नहीं रह सका, मैंने नौकरियाँ छोड़ीं, पदकी परवाह नहीं की और घर-घर घूमकर लोगोंको गुणी बननेका उपदेश दिया उसके लिए क्या मुझपर जुर्माना होना चाहिए या मुझे कोई और सजा मिलनी चाहिए? यदि कोई मनुष्य व्यायामशालामें आपका मनोरंजन करे और आपके मन में यह भाव उत्पन्न करे कि आप सुखी हैं, तो आप उसको विश्रान्ति-भवनमें रखेंगे। मैंने आपको सुखी दिखाई देनेका ही नहीं, बल्कि सचमुच सुखी होनेका मार्ग बताया है; इसलिए यदि मैं कुछ माँग सकता हूँ तो यही कहूँगा कि आपको मुझे बुढ़ापेमें विश्रान्ति-भवनमें रखना चाहिए।

मैं आपके सम्मुख अपराधी ठहराये जानेके बाद ऐसी बात करता हूँ। इससे आप यह मानेंगे कि मैं उद्धत हूँ और दण्डके बजाय पुरस्कार माँग रहा हूँ। किन्तु ऐसी कोई बात नहीं है। आपने मुझे दोषी ठहराया है, फिर भी मैं अपने आपको निर्दोष मानता हूँ। मैंने किसीका बुरा नहीं किया है। आप इस बातको नहीं समझ सके, क्योंकि मेरा मुकदमा कुल एक ही दिन चला। मैं इस अल्पकालमें आपको कितना समझा सकता हूँ? यदि मैं आपके सम्पर्कमें अधिक दिन रहा होता तो कदाचित् आपको समझा सकता। मैं निर्दोष हूँ, इसलिए मैं स्वयं सजा नहीं माँगता। तब मुझे जेलमें भेजा जाये? यह उचित नहीं है। मुझपर जुर्माना किया जाये? उसके लिए

 
  1. "यदि अपराध ऐसा होता था जिसके लिए कानूनमें कोई निश्चित दण्ड-विधान न हो तब...अभियोक्ता, मुकदमा जीत जानेकी दशामें, एक दण्डका प्रस्ताव करता था और अभियुक्त एक विकल्प रखता था तथा पंचोंको [ सभाके ही एक भागको, क्योंकि कोई न्यायाधीश नहीं होते थे ] उन दोनोंमें से एक चुनना पड़ता था। ... जब सुकरातको दण्ड दिया गया तब अभियोक्ताने उसके लिए मृत्यु दण्डकी माँग की। परन्तु, सुकरातने पहले विकल्प के रूपमें नगरकी स्वतन्त्रताका सुझाव दिया और फिर औपचारिक रूपसे, निर्वासनका नहीं, जिसे पंच सहर्ष स्वीकार कर लेते, एक मामूली जुर्मानेका प्रस्ताव किया।" एच० डी० एफ० कीटो, द ग्रीक्स। प्लेटोने इस जुर्माने की रकम १ माइना (लगभग ४ पौंड) से ३० माइना करनेके लिए सुकरातको राजी किया था।
  2. यह संख्या "तीस" होनी चाहिए।