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१५१. रोडेशियाके भारतीय

रोडेशियाके श्री शकूर इस्माइलका जो पत्र[१] हमने गत सप्ताह छापा था उसपर पाठकोंको विचार करना चाहिए। रोडेशियामें सरकार ट्रान्सवालके समान कानून बनाना चाहती है। यदि ऐसा हो तो यह बहुत भयंकर बात होगी। वहाँके भारतीयोंको लड़ाई लड़नी पड़ेगी। यदि लड़ाई लड़नी पड़े तो वहाँके भारतीय दूसरोंसे जो सहायता माँगते हैं वह उचित ही है। और हमें विश्वास है कि यदि वे सत्याग्रहकी लड़ाई लड़ेंगे तो उनको भी चारों ओरसे सहायता मिल सकती है। हमें आशा है कि उनको इस हद तक न जाना पड़ेगा।

किन्तु नया कानून बने या न बने, उनको जिन बाधाओंका सामना करना पड़ता है वे विचार करने योग्य हैं। कोई व्यक्ति शिक्षित हो, किन्तु नौकरी न करता हो तो उसे प्रविष्ट नहीं होने दिया जाता। यदि नौकरी बताई जाये तो यह बहाना कर दिया जाता है कि वह ठीक नहीं है। इस प्रकार भारतीयोंको वर्तमान कानूनका जो लाभ मिलना चाहिए वह भी नहीं दिया जाता। इसके विरुद्ध कानूनके अनुसार लड़ाई की जा सकती है। उस लड़ाईको लड़नेके लिए उन्हें रोडेशियामें किसी अच्छे वकीलकी सहायता लेनी चाहिए।

व्यापारिक परवानोंके मिलनेमें भी बाधाएँ जान पड़ती हैं। यह तो याद रखना ही होगा कि भारतीय इस समय किसी भी उपनिवेशमें अधिक संख्यामें प्रविष्ट नहीं हो सकते। परवाने भी खुले हाथों नहीं दिये जायेंगे। हाँ, आखिर भारतीय सब उपनिवेशोंमें जा सकेंगे और व्यापार भी कर सकेंगे। यह बात कितनी जल्दी होगी, यह उन भारतीयोंपर निर्भर है जो इस समय प्रवास कर रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि भारतीय अपनी साख बनाये रखें। उन्हें सफाई आदिके नियमोंका पालन करना चाहिए; और ऐसा मानकर कि वे स्वतन्त्र हैं, जहाँ नामर्दीकी बात आये वहाँ उसे हरगिज स्वीकार न करना चाहिए। 'फ्री हिन्दुस्तान' नामका एक पत्र प्रकाशित हुआ है। हम उससे कुछ अनुवाद[२] दे रहे हैं। वह इस प्रसंगमें देखने योग्य है। जिस प्रकार यहाँ हमारे सम्मुख बाधाएँ आती हैं, वैसी ही, जान पड़ता है,

८-१७
 
 
  1. ब्रिटिश भारतीय संघको लिखित अपने पत्रमें शकूर इस्माइलने, जो रोडेशियके भारतीय संघके अध्यक्ष थे, सहायताकी माँग की थी। पत्रमें दक्षिण रोडेशियाके भारतीयोंकी इन निर्योग्यताओंका उल्लेख था: (१) यद्यपि आव्रजन नियम उन शिक्षित भारतीयोंको, जो अपनी नौकरीका सन्तोषजनक प्रमाण दे सकते हैं, उपनिवेशमें प्रवेश करनेका अधिकार देते हैं, व्यवहारमें होता यह है कि उनकी उक्त नौकरीको असन्तोषप्रद ठहराकर उनका वह अधिकार उनसे छीन लिया जाता है।(२) जो लोग रोडेशियामें रह रहे हैं या जो अस्थायी अनुपस्थितिके बाद वहाँ वापस आना चाहते हैं उनके अधिकारोंकी सुरक्षाकी कोई कानूनी व्यवस्था नहीं है। इस सम्बन्धमें भारतीयोंका एक प्रतिनिधि मण्डल सैलिसबरीके प्रशासक (ऐडमिनिस्ट्रेटर) से मिला था, किन्तु राहत पानेका उसका प्रयत्न निष्फल रहा। एक अध्यादेशका मसविदा, जिसका उद्देश्य एशियाई आव्रजनको नियन्त्रित करना था और जो ट्रान्सवालके तत्सम्बन्धी कानूनसे बहुत मिलता-जुलता था, गजटमें प्रकाशित किया गया था। इसी समय, सामान्य विक्रेताओं और फेरीवालोंके व्यापारका नियन्त्रण करनेके लिए एक दूसरा अध्यादेश भी प्रकाशित किया गया था। इससे परवाने देनेका अधिकार नगरपालिकाओं और स्वास्थ्य निकायों (सैनिटरी बोर्डों) को दे दिया गया था। परवाने केवल उन्हें ही दिये जा सकते थे जिनके पास पंजीयन अध्यादेश के अन्तर्गत प्रमाणपत्र हों।
  2. यह यहाँ नहीं दिया गया ।