कैनडाके भारतीयोंके सम्मुख भी आती हैं। कैनडामें भारतीय ज्यादातर पंजाबसे जाकर बसे हैं। उन्होंने अपने कष्टोंके निवारणार्थ अभी हालमें ही यह अखबार निकाला है। उनके लेख साहससे पूर्ण दिखाई देते हैं।
इस प्रकार पृथ्वीके विभिन्न भागोंमें भारतीयोंमें जागृति दिखाई देती है। उनमें एकता, सच्चा साहस और सत्य आयेगा तो उन्हें स्वभावतः जीत मिलेगी। उतावली करनेसे आम नहीं पकते।
इंडियन ओपिनियन, ३०-५-१९०८
१५२. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
सत्याग्रहके संघर्षका श्रीगणेश
मैं पिछले हफ्ते लिख चुका हूँ कि कदाचित् जनरल स्मट्स दगा देंगे। अब दगा तो प्रमाणित हो गई है। यह पक्की तरह मालूम हो गया है कि उनका इरादा खूनी कानून रद करनेका नहीं है। अभी यह समाचार सरकारने जाहिर नहीं किया है, किन्तु भारतीय समाजमें खबर फैल चुकी है और सब लोगोंको जोश आ गया है। जान पड़ता है कि संघर्षका प्रारम्भ बहुत अच्छी तरह हुआ है और अब स्वेच्छया तथा अनिवार्य पंजीयनके अन्तरकी सारी जानकारी हमें निश्चय ही आसानीसे हो जायेगी। श्री ईसप मियाँने सरकारको नीचे लिखे अनुसार पत्र[१] दिया है:
चैमनेके नाम गांधीका पत्र
श्री गांधीने निम्नलिखित पत्र श्री चैमनेको लिखा है:[२]
इमाम अब्दुल कादिरका पत्र
श्री इमाम अब्दुल कादिर बावजीरने श्री चैमनेको निम्नलिखित पत्र भेजा है:[३]
श्री गांधीने खबर दी है कि सरकारका विचार स्वेच्छया पंजीयनको एशियाई कानूनके अन्तर्गत लेनेका है। श्री गांधीने जब समझौतेकी बात की थी तब साफ कह दिया था कि यदि भारतीय कौम स्वेच्छया पंजीयन करायेगी तो सरकार कानून रद कर देगी। अब यदि कानून रद नहीं होता, तो मैं उसे नहीं मान सकूँगा। जिस कानूनका विरोध करनेके लिए मैंने शपथ ली है और जो कानून तुर्कीके मुसलमानोंका अपमान करता है, यदि उस कानूनको मानूँ तो मैं जिस पदपर बैठा हूँ उस पदके योग्य नहीं माना जा सकता। इसलिए मेरा प्रार्थनापत्र तथा मेरे कागजात मुझे तुरन्त वापस भेज दीजिए। मैंने श्री गांधी द्वारा लिखा हुआ पत्र[४] भी पढ़ा है और मैं उसमें व्यक्त विचारोंसे पूरी तरह सहमत हूँ।