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प्रार्थनापत्र: ट्रान्सवाल विधानसभाको

प्रति घृणा और उपहासके भाव पैदा होंगे और इस तरह इन दोनों समाजोंके बीचमें सद्भावके निर्माणके रास्तेमें दुर्भाग्यवश जो कठिनाइयाँ मौजूद हैं वे बढ़ेंगी।

४. आपके प्रार्थीको नम्र रायमें विधेयकके पूर्वोक्त नियमोंपर इस आधारपर गम्भीर आपत्ति की जा सकती है कि वे उनकी स्वतन्त्रतापर, जिनपर कि वे लागू किये जायेंगे, बन्धन लगाते हैं। कारण, इन नियमोंके द्वारा नगरपालिकाओंको निम्नलिखित कार्य करनेकी सत्ता देनेका प्रयत्न किया जा रहा है:

(क) एशियाइयोंके पृथक्करणकी, और इस तरह, ब्रिटिश भारतीयोंको अलग बसानेके उस सिद्धान्तकी पुनःस्थापनाकी, जिसका यह संघ लगातार विरोध करता आया है।

(ख) जो प्रभावित होंगे, उनकी सुविधाका विचार किये बिना और उन्हें उतनी ही कीमती तथा सुविधाजनक दूसरी जगह देनेका आश्वासन दिये बिना एशियाइयोंके मौजूदा बाजार बन्द करनेकी (जैसा कि सम्मान्य सदन आसानीसे देख सकता है, भूस्वामित्वकी यह अनिश्चितता ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थायी और भद्रोचित जीवन-पद्धतिमें तथा उनके द्वारा स्थायी और पक्के निवास-गृह खड़े करनेमें भी निःसन्देह गम्भीर बाधा उपस्थित करेगी) ।

(ग) अमुक प्रकारके परवाने---जिनमें फेरीवालों और खोमचेवालोंके परवाने भी शामिल हैं---देनेसे मनमाने तौरपर इनकार करनेकी। जिन्हें परवाना देने से इनकार किया जायेगा उन्हें नगरपालिकाओंके निर्णयके खिलाफ अपील करनेका भी अधिकार नहीं होगा। इस तरह व्यापारियों, छोटे व्यवसायियों, फेरीवालों, खोमचेवालों और दूसरोंके धन्धोंपर ये नियम घातक प्रहार करते हैं और उनके लिए आसन्न विनाशका खतरा पैदा करते हैं। जो परवाने इस अन्तिम नियमके अन्तर्गत आते हैं, उन्हें इस विधेयकके अनुसार उन लोगोंको भी देने से इनकार किया जा सकता है जिन्हें आज नगरपालिकाओंके प्रतिकूल निर्णयोंके खिलाफ अपील करनेका अधिकार प्राप्त है।

(घ) ऐसे धन्धों और व्यवसायोंका निर्देश करनेकी, जिनसे ब्रिटिश भारतीय सर्वथा बहिष्कृत होंगे। उन्हें न तो इनके लिए परवाने दिये जायेंगे और न नौकरी ही दी जायेगी। इस तरह उनके प्रामाणिक जीविका कमानेके साधन सीमित कर दिये जायेंगे।

(ङ) सभ्य वेश-भूषा और भद्र आचरणवाले ब्रिटिश भारतीयोंको भी नगर-पालिकाकी ट्राम-गाड़ियोंमें यात्रा करनेका निषेध करनेवाले विनियमोंकी रचना करनेकी और इस तरह एक अत्यन्त सभ्य जातिका अपमान करने और उसे इस देशके आदि-वासी वतनीके स्तरपर उतारनेकी।

(५) आपके प्रार्थीकी नम्र रायमें, पूर्वोक्त प्रकारके बन्धन स्पष्टतः ब्रिटिश भारतीयोंको कतई कोई अधिकार प्रदान नहीं करते; उलटे, वे उन्हें उनके अनेक विद्यमान अधिकारों और प्राप्त सम्मानसे वंचित करते हैं।

(६) आपका प्रार्थी इस सम्मान्य सदनको इस बातकी याद दिलाने का साहस करता है कि ट्रान्सवालकी भारतीय आबादीपर और अधिक निर्योग्यताओंका लादा जाना सम्राट्की भारतवासी प्रजाके लाखों लोगोंके मनमें विद्यमान क्षोभ और कटुताके भावको बहुत ज्यादा उग्र कर देगा।