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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

अखबारोंको पत्र

तारीख ४ को ट्रान्सवालके अखबारोंमें श्री गांधीका निम्नलिखित पत्र[१] प्रकाशित हुआ है:

जयमलका मुकदमा

जयमलके मुकदमेके बाद ऐसे और भी बहुत-से मुकदममे चलाये जानेकी सम्भावना है। जयमलका दिया हुआ अनुमतिपत्र लेकर डाह्या नामका एक दर्जी जोहानिसबर्गमें आया था। वह गिरफ्तार कर लिया गया है। जान पड़ता है कि उसने निर्दोष भावसे अनुमतिपत्र लिया था; इसलिए उसके छूट जानेकी सम्भावना है। इस मुकदमेसे भारतीयोंको यह चेतावनी लेनी चाहिए कि टेढ़े तरीकेसे अनुमतिपत्र लेनेका इरादा करनेमें उनका अपना नुकसान है और उससे समाजका भी नुकसान होता है।

बुधवार [ जुलाई ८, १९०८ ]

सोराबजीका मुकदमा

श्री सोराबजीका मुकदमा[२] बुधवारको श्री जॉर्डनके सामने सुना गया। श्री चैमनेने गवाही दी। उसमें उन्होंने स्वीकार किया कि श्री सोराबजी प्रवासी कानूनके अन्तर्गत गिरफ्तार नहीं किये गये हैं और न वे उसके अन्तर्गत गिरफ्तार किये ही जा सकते हैं। उन्होंने कहा, श्री सोराबजीको [ इससे पहले ] गिरफ्तार न करनेका खास कारण है। अदालतमें खूब गर्मा-गरम बहस हुई। अदालत भारतीयोंसे खचाखच भरी थी। श्री गांधीने एक कानूनी मुद्देपर श्री सोराबजीको छोड़ देनेकी माँग की। न्यायाधीशने कहा कि वे इस विषयमें अपना निर्णय गुरुवारको देंगे। उनका निर्णय जो भी हो, उससे असली मुकदमेका फैसला नहीं होता। किन्तु इस विषयमें अन्य कानूनी मुद्दोंसे लाभ उठाना अधिक ठीक जान पड़ता है।

शोक

४ जुलाई शनिवारको श्री ईसप मियाँके छोटे भाई श्री सुलेमान मियाँका बच्चा, जो लगभग १० महीनेसे ज्यादाका था, गुजर गया। इस खेदजनक घटनापर हमें दुःख है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-७-१९०८
 
  1. यह पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। अनुवादके लिए देखें, "पत्र: इंडियन ओपिनियनको", पृष्ठ ३३३-३४।
  2. देखिए "सोराबजी शापुरजीका मुकदमा---१", पृष्ठ ३३७-४०।