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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझे आशा है कि आप यह कष्ट देनेके लिए मुझे क्षमा करेंगे। परन्तु चूँकि आप वहाँ मौजूद हैं और अपने बहुत-से काम-धन्धोंके साथ एशियाइयोंसे सम्बन्धित कार्य भी कर रहे हैं, इसलिए मैंने सोचा कि मेरे पास जो कुछ भी जानकारी है वह सब आपको भेज दूँ।

आपका हृदयसे,

श्री ए० कार्टराइट
प्रिटोरिया क्लब'
प्रिटोरिया

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४८३२) से।

२०७. पत्र: 'ट्रान्सवाल लीडर' को[१]

[ जोहानिसबर्ग,]
जुलाई १०, १९०८

[ सम्पादक
'ट्रान्सवाल लीडर'
महोदय, ]

आपने एशियाइयोंको सलाह दी है कि वे आवेशमें आकर कुछ न करें और एशियाई संघर्षको फिरसे प्रारम्भ करनेके सम्बन्धमें परिस्थितियोंके रुझानका रास्ता देखें। अतएव बहुत दुःखके साथ आपका ध्यान एक परिपत्रकी ओर आकर्षित करता हूँ जो एशियाई पंजीयन अधिकारीके हस्ताक्षरोंसे, अभी-अभी तारीख ७ को ट्रान्सवालके टाउन क्लार्कके नाम जारी किया गया है। परिपत्र नीचे दिया जा रहा है:

मुझे यह सूचना देनेका गौरव प्राप्त हुआ है कि १९०७ के विधेयक संख्या २ को कानूनकी किताबमें बनाये रखना निश्चित हुआ है; फलस्वरूप विधेयकके अन्तर्गत व्यापारिक परवानोंके लिए प्रार्थनापत्र देनेवाले सभी एशियाइयोंको पंजीयन प्रमाणपत्र अथवा साथ दिये हुए फार्ममें स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने पड़ेंगे और दफ्तरकी जाँचके लिए अपने दाहिने हाथके अँगूठे के साफ-साफ निशान भी देने पड़ेंगे।

 
  1. यह लीडरके १० जुलाई, १९०८ के अग्रलेखके उत्तरमें लिखा गया था जो १८-७-१९०८ के इंडियन ओपिनियनमें "ट्रान्सवालका झगड़ा: सरकारी वादे कैसे पूरे किये जाते हैं" शीर्षकसे उद्धृत किया गया था। लीडरने यह आशा व्यक्त की है कि एशियाई सरकारके साथ अपने झगड़ेके सिलसिलेमें कोई सनसनीदार कदम न उठायेंगे, क्योंकि उससे संसद, जिसका तब अधिवेशन हो रहा होगा, "भारी गड़बड़ी" में फँस जायेगी। ब्लूमफॅटीन फ्रेंडकी एक टिप्पणीफा उल्लेख करते हुए लीडरने आगे कहा है कि "दोनों पक्षोंको" यही सलाह दी जा सकती है कि समझौतेका पालन किया जाना चाहिए। किन्तु उसने एशियाइयोंसे यह स्वीकार कर लेनेका अनुरोध किया है कि उपनिवेशके यूरोपीय किन्हीं भी स्थितियोंमें नये प्रवासके लिए द्वार न खोलेंगे।