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सोराबजी शापुरजीका मुकदमा---२

जो एशियाई इन आवश्यकताओंको पूरा नहीं करता, वह कोई भी व्यापारिक परवाना पाने अथवा नया करानेका अधिकारी नहीं है।

अँगूठेका निशान, प्रार्थीके नाम और उसके पंजीयन प्रमाणपत्रकी संख्याके साथ इस दफ्तरमें जल्दीसे-जल्दी भेज दिया जाना चाहिए।

आप देखेंगे कि यह परिपत्र कानूनकी किताबमें १९०७ के अधिनियम २ को बरकरार रखने और स्पष्ट ही स्वेच्छया पंजीयनको कानूनी रूप देनेके विषयमें सरकारके निर्णयको व्यक्त करता है। यदि ऐसा है तो क्या एशियाई धीरज रखे रह सकते हैं और क्या वे सरकारके किसी भी लिखित या मौखिक वचनमें विश्वास कर सकते हैं? यदि यह परिपत्र सरकारके निर्णयको ठीक रूपमें व्यक्त करता है, तो यह एक जबर्दस्त आँख खोलनेवाला परिपत्र है। फिर भी पंजीयन प्रमाणपत्रको जलानेके लिए जिस सार्वजनिक सभाका ऐलान किया गया था वह स्थगित रहेगी और हर एशियाई सरकारकी घोषणाओंके प्रकाशनकी राह देखेगा। मैं जिस परिपत्रको पा सका हूँ, उसकी ओर जनताका ध्यान आकर्षित करनेका उद्देश्य केवल यह दिखाना है कि एशियाई कोई ऐसा कदम, जो वापस न लिया जा सके, बहुत गम्भीर चोट पहुँचनेकी स्थितिमें ही उठायेंगे।

[ आपका, आदि,
मो० क० गांधी ]

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-७-१९०८

२०८. सोराबजी शापुरजीका मुकदमा---२

[ जोहानिसबर्ग
जुलाई १०, १९०८ ]

इसी शुक्रवार, १० तारीखको पारसी सज्जन श्री सोराबजी शापुरजीपर श्री जॉर्डनको "बी" अदालतमें १९०७ के दूसरे अधिनियमकी धारा ८, उपधारा ३ के अनुसार यह आरोप लगाया गया था कि इसी ९ तारीखको सुपरिटेंडेंट वरनॉनने उनसे अधिनियमके अन्तर्गत पंजीयन प्रमाणपत्र दिखाने को कहा और वे ऐसा प्रमाणपत्र नहीं दिखा सके। श्री सोराबजी इसके पहले ऐसे ही एक आरोपमें बरी किये जा चुके हैं।[१] राज्यकी ओरसे श्री कैमरने अभियोग प्रस्तुत किया और प्रतिवादीकी ओरसे श्री गांधीने पैरवी की।

आरोपका सर्व-सामान्य रूपसे उत्तर देनेसे पहले श्री गांधीने "पूर्व निर्दोष सिद्धि" की दलील पेश की और कहा कि अभियुक्त इस आरोपमें पहले ही दोष-मुक्त किया जा चुका है।

न्यायाधीश: अपराध अभी जारी है।

श्री गांधीने उत्तर दिया कि उन्हें यह बात मालूम है; किन्तु उनकी माँग है कि यद्यपि अभियोगपत्रपर ९ जुलाईकी तारीख दी गई है, फिर भी अभियुक्तको उसी अपराधमें अदालतके

 
  1. पहले निर्णयके लिए देखिए "सोराबजी शापुरजीका मुकदमा---१" की पाद-टिप्पणी १, १४ ३४०।