पर मैं बताना चाहूँगा कि एशियाई अधिनियममें सरकारको छूट देनेका ऐसा कोई अधिकार कभी नहीं दिया गया था। क्या अदालत अधिनियमके मनमाने प्रयोगको प्रश्रय देगी?
न्यायाधीशने कहा कि अभियोग स्वीकार किया जा चुका है और मुझे केवल इतनी ही बातसे मतलब है। उन्होंने अभियुक्तको १० शिलिंग जुर्माने या चार दिनको सख्त कैदकी सजा दी।
मुहम्मद इब्राहीम कुनके, मूसा बगस, मुहम्मद इब्राहीम, अहमद मुहम्मद, मोतारा और एस० बगसको भी औपचारिक गवाहियोंके बाद इसी प्रकारकी सजा दी गई।
थम्बी नायडूपर भी बिना परवाना फेरी लगानेका अभियोग लगाया गया और गिरफ्तारीके बारेमें औपचारिक गवाहीके बाद अभियुक्तने गवाही दी। उन्होंने कहा कि मैं ठेलोंका ठेकेदार हूँ और मैंने पिछले शुक्रवारसे फेरीका काम शुरू किया है। मैं विगत जनवरीमें पंजीयन अधिनियम न माननेके कारण जेल गया था। समझौतेके विषयमें जनरल स्मट्सको जो पत्र भेजा गया था उसपर हस्ताक्षर करनेवालोंमें मैं भी एक था और समझौते के अन्तर्गत भारतीयोंकी जिम्मेदारीको पूरा करनेके प्रयासमें मैंने मार खाई थी।
अन्य लोगोंको भी उसी प्रकारकी सजा सुनाई गई।
इंडियन ओपिनियन, २५-७-१९०८
२३३. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
[ जुलाई २१, १९०८ ]
खरा खेल
श्री सोराबजी जेलमें हैं। उन्हें एक महीनेकी सख्त कैदकी सजा मिली है। अब तो प्रत्येक भारतीयके लिए जेल माँगना कर्तव्य हो गया है। श्री सोराबजीको सोमवारके सवेरे ७ बजे कड़ाकेकी सर्दीमें पकड़ा गया और जेल ले जाया गया। यह आवश्यक नहीं था। श्री गांधीने सूचना भेजी थी कि श्री सोराबजी जब जरूरत होगी तब हाजिर रहेंगे। अधि- कारियोंने उसकी परवाह नहीं की। श्री सोराबजीका मामला सुननेके लिए सैकड़ों भारतीय उपस्थित थे। सिपाहियोंने धक्का-मुक्की की। बहुत थोड़े भारतीयोंको अन्दर जाने दिया। बहुत-से गोरोंको दाखिल कर लिया। बाकीके जो भारतीय अदालतके बाहर रहे, उनपर जुल्म किया गया। श्री गुलाबभाई कीकाभाई, श्री खुरशेदजी देसाई वगैरहको पीटा। बहुतसे लोगोंका अपमान किया। यह हकीकत न्यायाधीशके सामने पेश की गई। न्यायाधीशने इसपर ध्यान नहीं दिया।[१]
मुकदमेमें कोई खास प्रमाण नहीं दिये गये। श्री सोराबजीको दो बातोंमें से एक पसन्द कर लेनी थी---अपना और देशका मान अथवा न्यायालयका हुक्म। श्री सोराबजीने न्यायालयके हुक्मको नापसन्द, और देशाभिमानको पसन्द किया।
न्यायाधीशने सजा दी। श्री सोराबजीने, उस सजासे मान मिला है ऐसा मानकर उसे स्वीकार कर लिया।
- ↑ देखिए "सोराबजी शापुरजीका मुकदमा--- ३", पृष्ठ ३७१।