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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

न्यायाधीशको अपने अत्याचारका जवाब देना पड़ेगा। जिन पुलिसवालोंने भारतीयोंपर हमला किया है[१], उनके विरुद्ध [ कार्रवाई करानेके लिए ] संघने कदम उठाया है। पुलिस कमिश्नर अथवा अदालतसे न्याय मिले चाहे न मिले, उससे हमारा कम सम्बन्ध है।

इस सारे जुल्मका कारण यह है कि हम कमजोर माने जाते हैं। जब अधिकारी हमारी शक्ति देखेंगे, तब वे ही कमजोर होकर बैठ जायेंगे।

फेरीवालोंको सजा

श्री इस्माइल आकूजी, श्री मूसा ईसप, श्री डाह्या पराग, श्री हरी भीखा, श्री सालेजी बेमात, श्री इस्माइल इब्राहीम, श्री केशव गुलाब, श्री नागजी मोरार---इतने फेरीवाले पकड़े गये थे। मंगलवारको उनका मामला था।[२] उनके बारेमें प्रमाण पेश करके श्री गांधीने बताया कि इन लोगोंको पकड़ना गरीबोंपर डाका डालने जैसा है। वे कोई गुनाहगार नहीं हैं। भारतीय नेतागण खुल्लम-खुल्ला कानून तोड़ते हैं; उन्हें किस लिए छोड़ दिया जाता है? सरकारने फरवरीमें कानूनके बाहर परवाने दिये, तो फिर अब कानूनकी रूसे ही परवाने क्यों दिये जा रहे हैं? न्यायाधीशने उपर्युक्त भारतीयोंपर १० शिलिंग जुर्माना किया और जुर्माना न देनेपर ४ दिनकी जेलकी सजा निश्चित की। बहादुर भारतीयोंने जेल जाना स्वीकार करके जुर्माना देनेसे इनकार किया है।

इमाम साहब गिरफ्तार

मंगलवारके दोपहरको इमाम अब्दुल कादिर बावजीर, श्री गौरीशंकर व्यास, श्री मूलजी पटेल, श्री गुलाब भाई कीकाभाई देसाई पकड़े गये। वे बाजारके चौकमें फेरी लगा रहे थे। श्री थम्बी नायडू मंगलवारकी सुबह पकड़े गये। उन्हें भी उसी अपराधमें पकड़ा गया है। श्री गौरीशंकर व्यास तथा श्री थम्बी नायडू जनवरीमें जेल जा चुके हैं। इन सभीने जमानतपर छूटनेसे इनकार किया है। यह सब पढ़कर ऐसा कौन भारतीय होगा जिसका मन रोता न होगा, हँसता न होगा। रोना इसलिए चाहिए कि ये कोमल भारतीय देशके लिए इतना कष्ट उठा रहे हैं। हँसना इसलिए चाहिए कि भारतीय कौममें ऐसे बहादुर पड़े हैं और उनके द्वारा कौमको मुक्ति मिलेगी।

श्री अब्दुल कादिर बावजीर इमाम हैं। हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके वे प्रमुख हैं। मैं तो कहता हूँ कि जिस दिन उक्त महोदय जेल जायें उस दिन सारे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको एक दिनकी हड़ताल करनी चाहिए।

 
  1. गुलाब भाई कीकाभाई देसाई, खुरशेदजी हुरमसजी देसाई और पोल्कने पुलिस कमिश्नरके सामने इस घटनाके सम्बन्धमें हलफिया बयान दिये और यह माँग की कि सम्बन्धित सिपाहियोंपर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। श्री पोल्कने हलफिया बयानमें कहा: 'चूँकि अदालतके मोड़दार किवाड़ोंका दरवाजा केवल एक ओरसे खोला गया था, इसलिए भारतीयोंकी एक भीड़ भीतर आनेका प्रयत्न कर रही थी। "सिपाही बी० ९९ ने उत्तेजनाका कोई कारण न होनेपर भी अदालतके बाहरकी खुली जगहसे घूँसे मारते और कंधोंसे धकियाते हुए भीड़पर हमला किया। मैंने देखा कि गुलाबभाई कीकाभाई देसाईका मुँह दाई ओर सूजा हुआ था और उनकी दाई आँखमें खून झलझला रहा था। उन्होंने मुझे बताया कि सिपाही बी० ६० ने उन्हें जोरका घूँसा मारा है। यद्यपि उन्होंने सुपरिटेंडेंट वरनॉनसे सख्त शिकायत की, किन्तु उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया...।"
  2. देखिए "इस्माइल आकूजी तथा अन्य लोगोंका मुकदमा", पृष्ठ ३७६-७८।