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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



बुधवार, [जुलाई २२, १९०८]

कल जो खबर दे चुका हूँ, उसके बाद मालूम हुआ है कि श्री इब्राहीम कुनके गिरफ्तार कर लिये गये हैं।

श्री इमाम अब्दुल कादिर इत्यादि जिनके नाम ऊपर दे चुका हूँ, उन्होंने तथा श्री कुनकेने जमानत नहीं दी और वे सारी रात जेलमें रहे। जेलमें इन सभीको पर्याप्त भोजन पहुँचा दिया गया था। इनमें से प्रत्येकको सोनेके लिए तीन कम्बल मिले थे।

आज बुधवारको ११ बजे उनका मुकदमा हुआ।[१]

इमाम साहबने बयानमें कहा कि उन्होंने फेरी दूसरोंके भलेके लिए शुरू की थी। उन्होंने सरकारको समझौतेमें मदद दी थी। 'मेरे अन्य भाई जिन्हें व्यापारी परवाने लेने पड़ते हैं, जेलमें जायें और मैं बाहर रहूँ, यह मुझसे नहीं देखा गया, इसलिए मैंने बगैर परवानेके फेरी लगाना तय किया है।' यह कहा है इमाम साहबने।

उसी मुकदमेमें श्री जोज़ेफने, जो परवाना निरीक्षक हैं, बयान देते हुए कहा कि सरकारने उन्हें १४ नाम भेजे हैं, जिनसे अँगूठोंके निशान न माँगे जायें।

इन सबको मजिस्ट्रेटने १०-१० शिलिंग जुर्माना अथवा चार दिनकी जेलकी सजा सुनाई। सबने जेल जाना पसन्द किया।

अन्य मुकदमे

इसके बाद श्री मूसा बगस, श्री सुलेमान बगस[२], श्री मुहम्मद इब्राहीम तथा श्री अहमद मुहम्मदका मुकदमा हुआ। उन्हें भी ऊपरके मुताबिक सजा दी गई और वे भी जेलवासी हो गये हैं। ये सब शनिवारको छूटकर वापस आ जायेंगे। मैं आशा करता हूँ कि सब फिरसे देशके लिए टोकरी लेकर निकल पड़ेंगे और फिर जेल जायेंगे।

श्री इमाम अब्दुल कादिर गये और उनके साथ श्री व्यास तथा श्री नायडू भी गये हैं। ये दोनों तो एक बार जेल काट आये हैं। इनकी सेवाओंका वर्णन करना आवश्यक नहीं जान पड़ता।

दूसरे व्यक्ति श्री इब्राहीम मुहम्मद कुनके हैं जो जेल गये हैं। उन्होंने अपनी दूकान छोड़कर फेरी शुरू की है। उनकी हिम्मतका पार नहीं है। उक्त महोदय कोंकणी हैं और उन्होंने इस प्रकार जेल जाकर अपने कोंकणी समाजका मुख उज्ज्वल किया है। श्री कुनकेने सभाओंमें भी अच्छा भाग लिया है और बहुत-से लोगोंको हिम्मत दी है।

श्री मूलजी पटेल अभी-अभी भारतसे आये हैं। उन्हें बम्बईकी सार्वजनिक सभाका अनुभव है और उन्होंने भी अपनी इच्छासे देशके लिए जेल स्वीकार की है।

श्री गुलाबभाई कीकाभाई देसाई जेल ही नहीं गये हैं; उन्होंने अदालत के दरवाजेके सामने मार भी सहन की थी।

इस प्रकार जिन लोगोंने कभी फेरी नहीं लगाई, वे फेरी करनेवाले बन गये; यह ऐसी-वैसी बात नहीं हैं। कहा जा सकता है कि इस सबका यश भी श्री ईसप मियाँको है। पहल श्री ईसप मियाँने की। वे अपने गलेमें दो टोकरियाँ लटकाकर फेरी करने निकले।

 
  1. देखिए "बावजीर, नायडू और अन्य लोगोंका मुकदमा", पृष्ठ ३८०-८२।
  2. देखिए "इब्राहीम इस्माइल और सुलेमान बगसका मुकदमा", पृष्ठ ३७४-७५।