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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पौंड देकर लिया गया है। फिलहाल तो यह मुकदमा प्रिटोरियामें जायेगा और उसके बाद फिरसे न्यायाधीशके पास आयेगा, ऐसा जान पड़ता है।

बुधवार [ जुलाई २९, १९०८ ]

रूडीपूर्टमें जो व्यक्ति गिरफ्तार हुआ था, उसे सात दिनकी सादी कैदकी सजा हुई है। वह जेल चला गया है। श्री पोलक उसकी पैरवी करने गये थे।

कूगर्सडॉर्प

समाचार है कि कूगर्सडॉर्पमें आज एक भारतीय गिरफ्तार हुआ है। श्री पोलक उसे जेल भेजनेके लिए जायेंगे।

दोराबजी

श्री पारसी दोराबजी नेटालसे आ रहे थे। अँगूठेकी छाप न देनेके कारण उन्हें फोक्सरस्टमें उतार लिया गया। श्री दोराबजीने अँगूठेकी छाप नहीं दी यह हिम्मतका काम किया। इसके बारेमें यहाँके अखबारोंमें खासी चर्चा हुई है और उसपर अच्छी टीका की गई है।[१] श्री दोराबजी ट्रान्सवालके बड़े पुराने निवासी हैं; राष्ट्रपति क्रूगर भी उनकी इज्जत करते थे। ये सारी बातें प्रकाशित हुई हैं। श्री दोराबजीको अन्तमें ट्रान्सवाल जानेकी मंजूरी दे दी गई।

अन्य बारह भारतीय

बारह अन्य भारतीयोंको अँगूठेकी छाप न देनेके कारण पकड़ा गया है। ये भारतीय बहुत गरीब फेरीवाले हैं, किन्तु जान पड़ता है कि बहादुर हैं। सुना गया है कि अदालतमें उनपर मुकदमा चलेगा। कोई अधिकृत समाचार नहीं मिला।

चेतावनी

याद रखें कि नेटालसे ट्रान्सवाल आनेवाले किसी भी भारतीयको हर्गिज अँगूठेकी छाप नहीं देनी है। यह सच है कि ऐसा विरोध करनेसे उन भारतीयोंको जेल जाना पड़ेगा। किन्तु यह करना आवश्यक है। तभी सच्चा छुटकारा मिलेगा।

'डेली मेल' में व्यंग्य-चित्र

'रैंड डेली मेल' में एक चित्र प्रकाशित हुआ है। जनरल बोथाने कैनडाके प्रधानमंत्रीके नाम जो पत्र लिखा है, चित्रके नीचे उसका अंश उद्धृत किया गया है। जनरल बोथाने लिखा है कि "राज्य चलानेके दो रास्ते हैं। एक तो मित्रतासे, दूसरा दबावसे"। ऐसा लिखनेमें जनरल बोथाका उद्देश्य यह था कि वे तो लोगोंसे मिल-जुलकर राज्य चलाते हैं। 'डेली मेल' के चित्रकारने तीन चित्र बनाये हैं। सर जॉर्ज फेरार, श्री गांधी और पुलिस, तीनों अपनी ठुड्डीपर हाथ रखे हुए आश्चर्यसे सोच रहे हैं कि क्या जनरल बोथा, उनकी सरकारने

 
  1. पारसी दोराबजी; सन् १८८१ में टान्सवालमें आनेवाले प्रथम पारसी; उपनिवेशमें अनेक होटल और दूकानें खोलीं; शायद कुछ दिनोंकी अनुपस्थितिके बाद उपनिवेशमें वापस आते समय जब उन्हें फोक्सरस्टमें गाड़ीसे उतर जाने को कहा गया तो उन्होंने १९०७ के गरक्रूअधिनियम २ के अन्तर्गत अँगूठोंके निशान देनेसे इनकार कर दिया। एक समसामयिक पत्रके समाचारके अनुसार उन्होंने बताया कि क्रूगर साहबके शासन कालमें पारसियोंके साथ गोरों जैसा वर्ताव किया जाता था, अतः मेरे साथ अन्य एशियाइयोंसे भिन्न बर्ताव होना चाहिए।