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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



स्टैंडर्टनके बहादुर

वे आज सवेरे जेलसे छूट कर आ गये हैं। उनसे मिलनेके लिए यहाँसे ईसप मियाँ, श्री बावजीर वगैरा आये थे। उनके छूटनेके बाद सभा हुई। उसमें हर कष्ट उठाकर लड़ाई अन्ततक संघर्ष करनेका प्रस्ताव पास हुआ। इस सभामें बहुत-से पंजीयन प्रमाणपत्र जमा करके जला डालनेके लिए दिये गये हैं। हाइडेलबर्ग, वेरीनिगिंग, क्रूगर्सडॉर्प आदि स्थानोंके नेताओंने भी सभामें भाग लिया।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २२-८-१९०८

२७८. पत्र: ई० एफ० सी० लेनको[१]

निजी

जोहानिसबर्ग
अगस्त २०, १९०८

प्रिय श्री लेन,

श्री कार्टराइटने मुझसे कहा है कि मैंने आजकी सभाके निर्णयके बारेमें उन्हें जो-कुछ बताया है, सो मैं आपको लिख दूँ और साथ ही तत्सम्बन्धी अपने विचार भी व्यक्त कर दूँ।

 
  1. १. यह पत्र २९-८-१९०८ के इंडियन ओपिनियनमें, निम्नलिखित प्रस्तावनाके साथ प्रकाशित किया गया था: "ट्रान्सवालके उपनिवेश-सचिवने एक निजी पत्रका प्रकट उपयोग इस तरह किया कि विधान सभाके सदस्योंके मनमें यह खयाल पैदा हो जाये कि भारतीय समाजने समझौतेके सवालपर अपना अन्तिम निर्णय और चेतावनी भेजी है। इसलिए श्री गांधीने पिछले रविवारको अपने भाषणमें परिस्थितियोंको पूरी तरह समझाया। जनरल स्मट्स द्वारा शिष्टाचारके इस उल्लंघनके कारण हम यहाँ श्री गांधीके जिस पत्रके अनधिकृत अंश प्रकाशित हो ही चुके हैं उसका पूरा पाठ दे रहे हैं।" कोई १५ वर्ष बाद यर्वदा जेलसे इस घटनापर लिखते हुए गांधीजी गलतीसे शायद, इस पत्रके बदले १४ अगस्त, १९०८ को जनरल स्मट्सको लिखे ( पृष्ठ ४४५-४६ ) पत्रका जिक्र कर गये, और २३ अगस्तकी सार्वजनिक सभा ( पृष्ठ ४६८-७१ ) के बदले १६ अगस्तकी सभा ( पृष्ठ ४५०-५४ ) के बारेमें बता गये। 'सत्याग्रहनो इतिहास' के २६ वें और २७ वें अध्यायोंके निम्नलिखित उद्धरणोंकी तुलना ( चौकोर कोष्ठकोंमें दिये गये ) समकालीन वक्तव्यों या रिपोर्टके उद्धरणोंसे करनेपर इस उलझनकी शुरुआतपर कुछ प्रकाश पड़ेगा। " 'इंडियन ओपिनियन' की साप्ताहिक डायरीमें [ भारतीयोंसे ] कहा गया था कि यदि खूनी कानून रद नहीं किया जाता है तो वे प्रमाणपत्र जलानेके लिए तैयार रहें। [ देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी" पृष्ठ ३६३ "रविवार (जुलाई १९, १९०८) को एक सार्वजनिक सभा की जायेगी।" "पंजीयन-पत्र नहीं जलाये जायेंगे, अभी समय नहीं आया है। सबसे अच्छा तो यह होगा कि जबतक जनरल स्मटम अपने विधेयकका मसविदा प्रकाशित नहीं करते तबतक प्रतीक्षा की जाये।" विधेयकका मसविदा ११ अगस्तको प्रकाशित हुआ, देखिए पृष्ठ ४४८-४९ ]। विषेयक जब विधानमण्डल ( लेजिस्लेचर ) में पास होनेको था, तब उसके विरुद्ध [१३ अगस्त, १९०८ को] एक अर्जी [देखिए पृष्ठ ४४३-४५] दी गई...लेकिन बेकार ही। अन्तमें सत्याग्रहियोंने सरकारको एक अल्टिमेटम ( अन्तिम चुनौती ) भेजा। इस शब्दका प्रयोग सत्याग्रहियोंने नहीं, बल्कि जनरल स्मट्सने किया था, जिनकी नजरोंमें पत्र एक अल्टिमेटम ही था।...[ स्वयं गांधीजीने इसे बजाय "एशियाइयोंकी अन्तिम