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परिशिष्ट ५

सार्वजनिक सभामें स्वीकृत प्रस्ताव

[ जोहानिसबर्ग
जुन २४, १९०८ ]

सार्वजनिक सभामें निम्नलिखित प्रस्ताव पास हुए थे:

प्रस्ताव १

एशियाई कानून संशोधन अधिनियमको रद करनेके लिए सरकारने यह शर्त लगाई है कि ट्रान्सवालमें युद्धके पहलेके अधिवासी कतिपय एशियाई अपने अधिकार छोड़ दें और एशियाई समाज उच्च शैक्षणिक योग्यता प्राप्त एशियाइयोंका अपमान किया जाना मंजूर कर ले। इससे सूचित होता है कि ट्रान्सवाल-निवासी एशियाइयोंके समुदायोंके साथ सरकारने पिछली जनवरीमें जो समझौता किया था उसकी मूल भावनासे वह हटना चाहती है। ट्रान्सवालके अधिवासी ब्रिटिश भारतीयोंकी यह सार्वजनिक सभा सरकारके इस रवैयेपर खेद प्रकट करती है।

यह प्रस्ताव मौलवी अहमद मुख्तार द्वारा पेश किया गया था।

प्रस्ताव २

सरकारने समझौतेके अपने हिस्सेका पालन न करनेका निर्णय किया है, इस कारण और इस बातको ध्यानमें रखते हुए कि ट्रान्सवालके एशियाइयोंने लगभग निरपवाद रूपसे स्वेच्छया पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र दिये हैं, यह सार्वजनिक सभा इस तरह दिये गये सारे प्रार्थनापत्रोंको वापस लेनेका निश्चय करती है और ११ सितम्बर, १९०६ के दिन की गई इस गम्भीर घोषणाको दुहराती है कि हम एशियाई कानून संशोधन अधिनियमकी अधीनता स्वीकार नहीं करेंगे और इस अस्वीकारके फलस्वरूप, जो भी दण्ड भोगना पड़े, उसे वफ़ादार नागरिकों और अन्तःकरणकी आवाज पर चलनेवाले व्यक्तियोंकी तरह भोगेंगे।

यह प्रस्ताव इमाम अब्दुल कादिर बावजीर द्वारा पेश किया गया था।

प्रस्ताव ३

यह सार्वजनिक सभा दक्षिण आफ्रिका, इंग्लैंड या भारतके उन सब लोगोंको, जिन्होंने समुचित स्वाधीनताकी प्राप्ति और आत्म-सम्मानकी रक्षाके लिए ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय समाजके संघर्षके समयमें इस समाजकी सहायता की है और सहानुभूति दिखाई है, सादर धन्यवाद देती है और आशा करती है कि वे अपनी सहायता और सहानुभूति तबतक प्रदान करते रहेंगे जबतक न्यायकी पूरी स्थापना नहीं हो जाती।

प्रस्ताव ४

यह सार्वजनिक सभा ब्रिटिश भारतीय समाजके अध्यक्षको अधिकार देती है और आदेश करती है कि वे पूर्ववर्ती प्रस्तावोंकी नकलें उपनिवेश-मन्त्री और भारत-मन्त्रीके पास भिजवानेके लिए माननीय उपनिवेश-सचिव और ट्रान्सवालके गवर्नर महोदयको भेज दें।

यह प्रस्ताव श्री मूलजी जी० पटेल द्वारा पेश किया गया था।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २७-६-१९०८