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परिशिष्ट १०

विधानसभामें जनरल स्मट्सका भाषण?[१]

[ प्रिटोरिया
अगस्त २१, १९०८ ]

"...माननीय सदस्योंको याद होगा, १९०६ की शाही उपनिवेशीय सरकारके अधीन एक कानून पास किया गया था। किन्तु उसे महामहिम सम्राट्की स्वीकृति प्राप्त नहीं हो सकी थी। फिर ट्रान्सवालकी विधानसभाने मार्च १९०७ में बिना किसी परिवर्तनके वही कानून...पास कर दिया। वह कानून गत वर्ष अमलमें आया।...उस कानूनके अन्तर्गत इस देशके एशियाइयोंके पंजीयनके लिए विभिन्न तारीखें घोषित की गई, लेकिन...एशियाइयोंने एक सत्याग्रह आन्दोलन संघटित किया, और उस कानूनके अन्तर्गत पंजीयन...असफल सिद्ध हुआ...गत वर्ष ३० जून तक, जोकि पंजीयनकी अन्तिम तिथि थी, अधिकसे-अधिक ६०० लोगोंने पंजीयन कराया था।...यह बहुत ही अटपटी, और कुछ अर्थों में अत्यन्त खतरनाक स्थिति थी। किसी सरकारके लिए सत्याग्रह आन्दोलनसे ज्यादा अटपटी स्थिति और कोई नहीं है। यह एक ऐसा आन्दोलन है जो वास्तवमें युद्धकी कार्रवाईके समान है, और जहाँतक सरकारका सम्बन्ध है, वस्तुतः यह अराजकता जैसा है। बहुत प्राचीनकालमें मनुष्य इसका मुकाबला केवल युद्धकी घोषणा करके करता। मैंने कानूनको कार्यान्वित करनेका भरसक प्रयत्न किया...और इसके फलस्वरूप इस वर्षके प्रारम्भमें बहुत-से एशियाई कारावासमें कष्ट सहन करते रहे।...अन्तमें मैं एशियाई समाजके कुछ नेताओंसे मिला और मैंने उनसे इस प्रश्नपर बातचीत की। परिणामतः इस सदनको बैठक होनेतक अस्थायी व्यवस्था कर दी गई...कि जो एशियाई इस देशके वैध अधिवासी हैं उन सबका स्वेच्छ्या पंजीयन हो और इस मामलेकी सम्पुष्टिके लिए इस सदनमें पेश किया जाये।...अबतक इस देशके लगभग प्रत्येक एशियाईने...पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र दे दिया है... प्रार्थना-पत्रोंकी संख्या ९,१५८ है।...इनमेंसे...७,७७३ की वैध अधिवासी मान लिया गया है और उन्हें पंजीयन प्रमाणपत्र दे दिये गये हैं। १,२१४ प्रार्थनापत्र अस्वीकार कर दिये गये हैं।...थोड़े-से प्रार्थना-पत्रोंपर, जिनकी संख्या १७१ है, अभी निर्णय नहीं हुआ है। अँगुलियोंके निशान देनेमें कोई महत्वपूर्ण आपत्ति नहीं उठाई गई। (हर्ष-ध्वनि)।...७,०१० ने अँगुलियोंके और १,९६० ने दोनों अँगूठोंके निशान दिये।...केवल ७० ने अँगुलियोंके निशान देनेसे इनकार किया। इस प्रकार माननीय सदस्य देखेंगे कि मुख्य कठिनाई अँगुलियोंके निशान देनेके सम्बन्धमें थी...यह विचार सही नहीं था। मुख्य आपत्ति स्वयं कानूनके सम्बन्धमें थी। प्रमुख भारतीयोंने मुझपर दोषारोपण किया है... कि समझौते की शर्तोंका पालन नहीं किया गया...कि यह वचन दिया गया था कि अधिनियमको रद कर दिया जायेगा और उस वचनको मैंने निभाया नहीं।..समझौतेका अक्षरशः पालन किया गया है। एशियाई नेताओंने जोहानिसबर्ग जेलसे भेजे २८ तारीख के एक पत्रमें बतौर प्रार्थनाके निम्नलिखित प्रस्ताव किया है। वे कहते हैं: "अँगुलियोंके निशानकी माँगके विरुद्ध हमारा विरोध कभी इतना अधिक नहीं रहा।..." फिर अँगुलियोंके निशानोंके सम्बन्धमें ढील देनेका कुछ उल्लेख किया गया है। यह प्रस्ताव मैंने स्वीकार कर लिया था, और इससे दो प्रश्न उठ खड़े हुए हैं: पहला यह कि क्या अधिनियमको रद करनेका वादा किया गया था? मैं नहीं समझता कोई न्यायालय मेरे वादेकी ऐसी व्याख्या कर सकता है। परिणाम यह हुआ कि स्वेच्छ्या पंजीयन करानेवाला एशियाई एक अन्य अधिनियमके अन्तर्गत पंजीयन करा सकता था, अधिनियम २ के अन्तर्गत नहीं। एशियाई इस मामलेको न्यायालयमें ले गये, और सर विलियम सॉलोमनने यह मत व्यक्त किया कि समझौतेकी सही व्याख्या एशियाइयों द्वारा की गई व्याख्यासे

 
  1. उपनिवेश सचिव द्वितीय वाचनके लिए एशियाई पंजीयन संशोधन विधेयक पेश कर रहे थे।