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भाषण: न्यूटाउन मस्जिद में

आतिथ्य

मैंने समझा था कि मुझे सम्राट्का आतिथ्य स्वीकार करनेसे पहले अपने देशवासियोंसे दो शब्द कहने का अवसर नहीं मिलेगा। किन्तु ईश्वरकी इच्छा दूसरी ही थी। मैं आपके सामने हूँ और मैं एक महीने, दो महीने, हो सकता है ६ महीनेके लिए, आपसे बिदा हो रहा हूँ। मेरा आपसे यह कहना है कि "आप अपने-आपको धोखा न दें, सरकारको धोखा न दें और अपने तुच्छ सेवकको धोखा न दें।" मेरा सचमुच यह विश्वास है कि संघर्ष आपकी मर्जीसे शुरू किया गया है। जब मैंने आपके सामने कानूनकी सच्ची हकीकत पेश की थी तब आप सबने कहा था कि इस कानूनके आगे घुटने टेकना आपके लिए सम्भव नहीं है। ऐसे कानूनके आगे झुकने के बजाय आप जेल जाने, देशसे निकाले जाने और अपना सर्वस्व गँवा देनेके लिए तैयार हैं।

अधिनियमका देश

मैं हजार बार कह चुका हूँ और फिर कहता हूँ कि इस कानूनमें सवाल अपनी पत्नी या माताका नाम अथवा अपने अँगूठे या दस अँगुलियोंकी छाप देनेका नहीं है, हालाँकि जब हम इन्हें देनेपर मजबूर किये जाते हैं तब इनपर विचार करना जरूरी हो जाता है। देश तो कानूनकी मूल -भावनामें है। ईसा मसीहने कहा है, भगवानको किसीने नहीं देखा, क्योंकि वह अशरीरी तत्त्व है। उसी प्रकार इस कानूनका अन्तर्निहित तत्त्व भी शब्दोंसे प्रकट नहीं किया जा सकता। हर भारतीय इस तत्त्वका अनुभव करता है और अनुभव करनेपर उससे उसी प्रकार दूर रहना चाहता है जिस प्रकार शैतानसे। कानून समूचे भारतीय समाजके तिरस्कारपर आधारित है; और जनरल स्मट्सके यह कह देनेसे कि वे भारतीयोंके साथ उचित और न्यायपूर्ण बर्ताव करना चाहते हैं, तनिक भी अन्तर नहीं पड़ता। फैसला उनके कामोंकी बिनापर दिया जाना चाहिए, उनके शब्दोंकी बिनापर नहीं। हमारे देखने में यह आया है कि थोथी प्रतिष्ठाके कारण सरकार, जो-कुछ हम स्वेच्छासे देना चाहते हैं, उसे लेनेको तैयार नहीं है और हमें गुलामोंकी तरह देनेपर विवश करना चाहती है। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता-सम्बन्धी मामलोंमें अनिवार्यता तभी लादी जा सकती है जब सम्बन्धित व्यक्ति गुलाम हों।

कुत्तेका पट्टा

उन्होंने बताया कि उन्हें उस समयकी, जब वे श्री अलीके साथ जनताके सेवकके रूपमें इंग्लैंड गये थे, एक घटना अच्छी तरह याद है। जहाजपर एक सज्जनने कहा, "मैं समझ गया, आप कुत्तेके पट्टसे छुटकारा पानेकी गरजसे लन्दन जा रहे हैं।" बिलकुल ठीक। हम गलेमें कुत्तेका पट्टा नहीं लटकाना चाहते, इसीलिए हमने लड़ाई छेड़ी है। हम लोग भावनापर सर्वस्व न्यौछावर करनेको तैयार हैं, किन्तु हमारी यह भावना एक उदार भावना है। यह ऐसी भावना है जिसका पोषण धार्मिक भावनाके रूपमें करना आवश्यक है। यह वह भावना है जो लोगोंको एकसूत्रमें बाँधती है। यह वह भावना है जो प्राणीको सृष्टिकर्तासे आबद्ध करती है। यह वही भावना है जिसके लिए मैंने आप लोगोंसे प्रार्थना की है और सलाह दी है कि आवश्यक होनेपर आप अपने प्राण भी अर्पित कर दें। आपके इस कामकी प्रतिध्वनि सभी ब्रिटिश उपनिवेशोंमें तथा भारतके कोने-कोने में गूँज उठेगी। हम कोई अपराधी नहीं हैं।

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