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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जनरल स्मटसकी कार्रवाई

उन्होंने कहा कि मेरा यह खयाल जरूर है कि जनरल स्मट्सने भारतीयोंको गिरफ्तार करके और उन्हें जेल पहुँचानेका इरादा करके बड़ा सराहनीय काम किया है। जनरल स्मट्सने जो रिपोर्ट पढ़ी हैं उनके परिणामस्वरूप उनका यह विचार कि इस सारेके-सारे आन्दोलनका आधार चन्द भारतीय ही हैं, सर्वथा उचित है। यदि यह थोड़ेसे भारतीयोंपर ही निर्भर है और यदि पिछले १६ महीनोंसे हमारे समस्त देशवासी एक साथ होकर काम नहीं करते रहे हैं तब तो, मेरे विचारमें, हमने अपने-आपको इस कानूनके योग्य साबित कर दिया है। जब मैं और मेरे साथी उपद्रव करनेके लिए यहाँ न रहने दिये जायेंगे तब भी यदि भारतीय कंधे से कंधा मिलाकर दृढ़ बने रहे और हर प्रकारकी असुविधा झेलने और सर्वस्व गँवानेके लिए तत्पर रहे तो मुझे इसमें किंचिन्मात्र सन्देह नहीं है कि उन्हें सब-कुछ मिल जायेगा और उन्हें जिन विवेकशील उपनिवेशियोंकी कद्र कुछ कीमत रखती है, उनकी प्रशंसा प्राप्त हो जायेगी। और यदि वे कानूनके आगे घुटने टेक देंगे तो सचमुच वे कुत्तों जैसी जिन्दगी बसर करने और उपनिवेशियोंकी ठोकरें खानेके लायक बन जायेंगे। मैं और मेरे साथी जैसे ही मैदानसे हटेंगे वैसे ही, बहुत सम्भव है, पंजीयन कार्यालयके दरवाजे फिर एक बार खोल दिये जायेंगे, किन्तु फिर भी मैं यह आशा अवश्य करता हूँ कि आप लोगोंने जो कुछ सार्वजनिक रूपसे कहा है और परमात्माके सामने एकान्तमें जिसके लिए प्रार्थना की है, उसे आप अन्त तक निबाहेंगे। मुझे आशा है कि आप किसी प्रकारके आतंक या धमकी, अथवा अपने सहप्रजाजनों---यदि उन्हें इस नामसे याद किया जा सके--- या ब्रिटिश यूरोपीय प्रजाजनों द्वारा की गई कितनी भी सभाओंके कारण उस पथसे विचलित नहीं किये जा सकते जिसपर आप अग्रसर हो चुके हैं। जो व्यक्ति भगवानपर भरोसा रखता है उसके लिए न कोई आतंक है, न कोई भय है।

" धार्मिक स्वतन्त्रताके लिए संघर्ष "

दूसरे लोग कुछ भी कहते रहें, मैं सदा यही कहूँगा कि यह संघर्ष धार्मिक स्वतन्त्रताके लिए है। 'धर्मसे मेरा मतलब औपचारिक या रूढ़ धर्म नहीं है, बल्कि मेरा तात्पर्य उस धर्मसे है जो सब धर्मोकी तहमें होता है, जो लोगोंका अपने सिरजनहारसे साक्षात्कार कराता है। यदि आप मनुष्यत्वको तिलांजलि देते हैं और बिना कोई शारीरिक असुविधा झेले ट्रान्सवालमें बने रहनेके उद्देश्यसे समझ-बूझकर किया हुआ संकल्प तोड़ते हैं तो आप निस्सन्देह अपने प्रभुसे पराङ्मुख होते हैं। ईसा मसीहके वचनोंको दुहराते हुए कहना पड़ेगा कि जो भगवानका अनुचर होना चाहते हैं उन्हें संसारका परित्याग करना पड़ता है। इस संघर्षमें आपसे संसार त्यागने और प्रभुसे उसी प्रकार चिपके रहनेके लिए कहता हूँ जिस प्रकार कोई शिशु अपनी माताके वक्षसे चिपका रहता है। यदि आप यह करते हैं तो मुझे इस बातमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि संघर्षका परिणाम सफलताके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हो सकता।