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५१. सेठ शीघ्र क्यों नहीं छूटते ?

बहुत-से भारतीय उपर्युक्त प्रश्न कर रहे हैं। उत्तर यह है कि हमारे सत्याग्रहमें कसर है | सत्याग्रहका संघर्ष त्रैराशिक जैसा है। गाड़ी जितनी मजबूत हो, उतना ही बोझ हम उसपर लाद सकते हैं। अधिक बोझ लादनेसे गाड़ी टूट भी जा सकती है। सत्याग्रहरूपी गाड़ीके विषय में भी वैसा ही समझना चाहिए। सेठ लोग समाजके लिए जेल गये हैं । उनके दुःखोंकी गाड़ी अन्य भारतीयोंका सुखरूपी बोझा उठा सकती है, इसमें सन्देह नहीं है। किन्तु यदि उस गाड़ीको आगे बढ़ानेके लिए दूसरे उसकी धुरीमें हाथ लगायें, तो वह तेजी से चल सकती है । यदि धुरीमें हाथ लगानेवाले लोग न मिलें, तो वह रास्ते में पड़ो रहेगी। गाड़ी टूट जायेगी, सो बात तो नहीं है, किन्तु मंजिलपर पहुँचने में वक्त लगेगा। इसमें सत्याग्रहका कोई दोष नहीं है। जो समय बीतता चला जा रहा है उससे जाहिर होता है कि सत्याग्रह जितना चाहिए उससे कम है; इसलिए गाड़ीकी चाल धीमी है । यदि सत्याग्रह में भाग लेनेवाले लोग अधिक हो जायें, तो तुरन्त छुटकारा हो सकता है। यह समझना बिलकुल आसान है ।

नेटालमें सेठोंको बिदा देनेके लिए सैकड़ों भारतीय गये । उनके पीछे जानेके लिए उनमें से बहुत-से तैयार थे । किन्तु अब जब समय आ पहुँचा है, तब नेटालसे केवल तेरह भारतीय सामने आये हैं । काम करनेके लिए बहुत लोग तैयार थे; किन्तु समय आनेपर वे नजर नहीं आते। हरएक ऐसा सवाल करता मालूम होता है कि मुझे इससे क्या फायदा ? किन्तु वे यह बात भूल जाते हैं कि सत्याग्रह दूसरोंके हो लाभके लिए चल सकता है। उसमें अपना लाभ भी शामिल है, यह ध्यान रखनेकी जरूरत नहीं है। नेटालने ऐसा नहीं किया। इसमें नेटालका दोष नहीं है। इससे केवल इतना ही जाहिर होता है कि हमें अभी पूरा अनुभव नहीं है, सहनशक्ति नहीं है, ज्ञान नहीं है । ये सब बातें हमें समय पाकर आयेंगी । तबतक वांछित परिणाम होन में समय लगे तो हमें अधीर नहीं होना चाहिए।

इस बीच जो लोग सत्याग्रहको समझते हैं उन्हें उसमें चुस्त रहना चाहिए। अकेला मनुष्य भी सत्याग्रही रह सकता है। और यदि वह ऐसा करे तो कहा जायेगा कि उसने अपने कर्तव्यका पूरा पालन कर लिया। इससे अधिक करनेकी बात ही नहीं है ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १०-१०-१९०८