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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

अर्जीका नमूना बताया, तब उसने उपनिवेशके बाहर जानेसे इनकार कर दिया और इसपर वह पुनः गिरफ्तार कर लिया गया ।

जिरहके बीच कॉरपोरल कैमरॉनने स्वीकार किया कि अभियुक्तपर प्रवासी कानूनके खण्ड २ के उपखण्ड ३, ५, ६, ७ और ८ लागू नहीं होते और न उसको उपनिवेशके बाहर निकाल देनेके विषयमें कोई हुक्म है । यह मानने के लिए भी कोई कारण नहीं है कि अभियुक्तने जो दस्तावेज पेश किये हैं, वे कानूनके अनुसार उसके नहीं हैं।

श्री गांधीने कहा कि अभियुक्तको अधिकार है कि वह १९०७ के एशियाई कानून २ के अनुसार, जो रख नहीं किया गया है, उपनिवेशमें आ सकता है । और चूंकि उसने अपना अनुमतिपत्र ( परमिट) बता दिया है इसलिए वह निषिद्ध प्रवासी भी नहीं माना जा सकता । प्रवासी कानूनके खण्ड ४ के उपखण्डके मातहत भी उसने कोई अपराध नहीं किया है।

मजिस्ट्रेटने अभियुक्तको दोषी करार दिया, किन्तु कहा कि उसपर उपनिवेश छोड़कर न जानेके लिए प्रभाव डाला गया है। उसे १५ पौंड जुर्माने अथवा एक महीना कठोर कारावासकी सजा सुना दी गई।

करसन जोगी और अन्य आठ व्यक्तियोंपर भी, जिनमें दो नाबालिग थे, यही आरोप लगाया गया और हीरजी मूलजीको छोड़कर उन्हें भी यही सजाएँ दी गई। हीरजी मूलजी एक बारह वर्षका लड़का है। उसे पाँच पौंड जुरमाने या चौदह दिनकी सादी कैदको सजा सुनाई गई।

रतनजी सोढा, मावजी करसनजी, रविकृष्ण तलेवंतसिंह और रतनजी रघुनाथपर भी निषिद्ध प्रवासी होनेका अभियोग लगाया गया। अभियुक्तोंने अपनेको निरपराध बताया। पहले तीनने कहा कि उन्हें शैक्षणिक कसौटीके अनुसार उपनिवेशमें प्रवेशका अधिकार है। और पहले दो तथा रतनजी रघुनाथने कहा कि वे लड़ाईसे पहले ट्रान्सवालमें रहते थे । मावजी करसनजीने कहा कि वे सम्राट्की स्वयंसेवक सेनाके भूतपूर्व सदस्य हैं, और उन्होंने गत बोअर युद्धमें जो सेवाऐं कीं उनके लिए उन्हें एक पदक भी दिया गया था, तथा इस हैसियत से भी उन्हें प्रवेशका अधिकार है। रविकृष्णका जन्म ही दक्षिण आफ्रिकामें हुआ था ।

अभियुक्तोंकी तरफसे गवाही देते हुए श्री गांधीने कहा कि अभियुक्तोंको उपनिवेशमें आनेकी सलाह देनेकी सारी जिम्मेवारी उनकी है। अधिकांशमें अभियुक्त उन्हींकी सलाहसे प्रभावित हुए हैं, यद्यपि उन्होंने निःसन्देह अपनी स्वतन्त्र बुद्धि से भी काम लिया है। [श्री गांधीने यह भी कहा कि ] उन्होंने अभियुक्तोंको जो यह सलाह वी, उसमें राज्यके सबसे बड़े हितोंका पूरी तरहसे विचार कर लिया था ।

जिरहमें श्री गांधीने स्वीकार किया कि उन्होंने अभियुक्तोंको एक सार्वजनिक सभामें और अलग-अलग भी [ उपनिवेशमें ] प्रवेश करनेके लिए कहा था। उस समय शायद एकके सिवा अन्य अभियुक्तों के मनमें उपनिवेशमें प्रवेश करनेकी बात नहीं आई थी। निःसन्देह, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उन्होंने अभियुक्तोंको प्रवेश करने में मदद दी, ट्रान्सवालमें