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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

तो ऐसी बातको दुःखरूप ही मानेगी, और इसीलिए विलायत में इस बातको लेकर इतना हल्ला मचा।

रास्ते में सन्तरीकी ओरसे कोई तकलीफ नहीं हुई । सन्तरी खुद खुली अनुमति न दे तो जेलकी खुराक के सिवा कोई दूसरी खुराक न खानेका मेरा निश्चय था । इसलिए आज तक मैं जेलकी ही खुराकपर निभता आया था। रेलमें मेरे साथ खाना रखा नहीं गया था । सन्तरीने मुझे जो कुछ खाना चाहूँ सो खानेकी छूट दे दी। स्टेशन मास्टरने मुझे पैसे देनेकी इच्छा प्रकट की । उसके मनमें भी मेरे लिए बहुत सहानुभूति उमड़ आई थी । मैंने उसका उपकार माना, पर पैसे लेनेसे इनकार कर दिया। श्री काजी स्टेशनपर हाजिर थे। उनसे मैंने दस शिलिंग लिये । उससे मैंने सन्तरीके लिए और अपने लिए ट्रेनसे खानेकी चीजें खरीदीं।

हम जोहानिसबर्ग पहुँचे, उस समय शाम हो गई थी। इसलिए मुझे दूसरे भारतीय कैदियोंके पास नहीं ले जाया गया। जेलमें मुख्यतः जहाँ बीमार काफिर कैदी थे, उनकी कोठरी में मुझे बिस्तर दिया गया। इस कोठरीमें मेरी रात बहुत दुःख तथा भयमें बीती । मुझे इस बातका पता नहीं था कि दूसरे ही दिन मुझे अपने लोगोंके बीचमें ले जायेंगे। मैं सोचता था, मुझे इसी जगह रखेंगे। इससे में भयका अनुभव करता रहा। मैं बहुत घबराया । फिर भी, मनमें यह निश्चय किया कि मेरा कर्तव्य तो यही है कि जो भी दुःख आ पड़े, उसे मैं सहन करता रहूँ । 'भगवद्गीता' मेरे साथ थी । उसे मैंने पढ़ा । समयोचित श्लोक पढ़कर उनका मनन किया और धीरज रखा ।

चिन्तित होनेका कारण यह था कि काफिर और चीनी कैदी जंगली, खूनी और अनैतिक आचरणवाले मालूम हुए। उनकी भाषा मैं जानता न था । एक काफिरने मुझसे सवाल पूछना शुरू किया। उसमें भी मुझे गन्दा हँसी-मजाक मालूम हुआ । मैं उसे समझ नहीं सका और मैंने कोई जवाब नहीं दिया। तब उसने मुझसे टूटी-फूटी अंग्रेजीमें पूछा: "तुझे यहाँ इस तरह क्यों लाये हैं ? " मैंने छोटा-सा उत्तर दिया और फिर चुप हो गया। बाद में चीनीने सवाल पूछना शुरू किया। वह ज्यादा बुरा आदमी मालूम हुआ । मेरे बिस्तरके पास आकर वह मुझे देखने लगा। मैं चुप रहा। बाद में वह काफिर कैदीके बिस्तर के पास पहुँचा। वहाँ दोनोंने एक-दूसरेसे गन्दा हँसी-मजाक करना शुरू किया और एक-दूसरेके दोष बताने लगे । ये दोनों कैदी खून अथवा बड़ी चोरीके अपराधमें पकड़े गये थे । यह सब देखकर मुझे नींद तो कैसे आती ? दूसरे दिन गवर्नरको यह सब बताऊँगा, ऐसा सोचकर बहुत रात गये मैं थोड़ा सोया ।

वास्तविक दुःख तो इसे कहना चाहिए। सामान ढोना आदि तो कुछ नहीं है । जो अनुभव मुझे हुआ वह दूसरे भारतीयोंको भी होता होगा, वे भी डरते होंगे, ऐसा सोचकर इस विचारसे मैं खुश हुआ कि ऐसे दुःखका अनुभव मैंने भी किया। मैंने निश्चय किया कि इस अनुभवके बाद मैं सरकारके साथ इस सम्बन्धमें अधिक लड़ाई चलाऊँगा और जेलमें होनेवाली ऐसी बातों में सुधार करवाऊँगा । यह सब सत्याग्रहकी लड़ाईका अप्रत्यक्ष लाभ है ।

दूसरे दिन उठते ही मुझे दूसरे भारतीय कैदियोंके पास ले जाया गया, इसलिए ऊपरकी बात गवर्नर से कहने का प्रसंग नहीं आया। लेकिन सरकार से इस बातपर लड़ाई करनेका विचार मेरे मनमें अब भी है कि भारतीयोंको काफिर अथवा दूसरे कैदियोंके साथ न रखा जाये । जब मैं पहुँचा, उस समय भारतीय कैदियोंकी संख्या लगभग पन्द्रह थी। उनमें तीनके सिवा