पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१०४

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पवित्रता n n अपवित्रता आ गई है, कि हमारे हाथ ऋपियों का इतना बड़ा आदर्श- त्याग और वैराग्य का श्रादर्श-मटियामेल हो गया ? त्याग, वैराग्य महात्मा बुद्ध ने त्याग किया, ईसा ने त्याग किया, और इनके शंकर ने त्याग किया, रामकृष्ण परमहंस ने त्याग अनर्थ किया, स्वा० दयानन्द ने त्याग किया, स्वा० राम ने त्याग किया, भर्तृहरि ने त्याग किया, गोपीचन्द ने त्याग किया, पूर्ण भक्त ने त्याग किया, वैराग्य का बाना लिया, बस अब किसान भी हल जोतने को त्याग उनका सा रूप सँवार चले गंगातट को, चले हृषिकेश को, वहाँ अन्न मुफ्त मिलता है | छोटे २ बालक और नवयुवक भी कुदे । अहह ! अादर्श के दर्शन हुए, कमीज़ और पाजामा उतार दिया, जोश आया, वैराग्य पाया, गेरू रंग के वस्त्र धारण किए हुए फिर रहे हैं और दिन कटता ही नहीं रात गुज़रती ही नहीं। जंगल खाता, है, एकान्त भाता ही नहीं । सभाएँ हों, पुलपिट हों, कालिज हों, स्कूल हों, आप अपने आपको दान देने को तय्यार हैं, बलिदान हो चुका, यज्ञ हो गया । स्त्री का मुख देखना पाप है। बड़े २ वैराग्य के ग्रन्थ खोल, गेरू रंगे हम अपनी माता बहिन और कन्याओं को नग्न कर २ के उनके हड्डी मांस की नस२ को गिनर कर तिरस्कार करते हैं। क्यों भाई ! बिना इसके भला वैराग्य और ब्रह्मचर्य का पालन कब होता है ? वैराग्य और त्याग के उपदेश हो रहे हैं कि बस अात्मिक पवित्रता इसी से पाएगी । जगत् बस अभी जीता कि जीता, किला सर हो गया, आपका, बोलवाला हो गया | नहीं प्यारे ! जरा थम जावो, जरा अपने शरीर को देखो, जरा बुद्ध के शरीर को देखो, जरा शङ्कर भगवान् के रूपको देखो, जरा बड़े २ महात्माओं के शरीर को देखो, यदि ये शरीर पवित्र हैं तब उनकी माता का शरीर किस लिये अपवित्र मान लिया ! यदि इन सबको पीताम्बर पहनाए पूजते हो तब वैराग्य और त्याग में मस्त लोगो ! १०४ , . , ५