निबन्धकार एवं कवि पूर्णसिंह २. खुले घुड (घूघट ) और ३. खुले लेख । इन्होंने पंजाबी में 'वार्तक कविता' (कथोपकथन शैली) नाम से एक नयी शैली चलायी, पहली दो पुस्तकें उसी शैली में लिखी गयी हैं । बलदे दोवे इनकी दूसरी कविता पुस्तक है तथा मुइया दी जाग, प्रकाशना और भगीरथ ये तीन उपन्यास हैं। इन्होंने पंजाबी से कई चीजों का अनुवाद अंग्रेजी में किया, जिसमें गुरु नानक जी के 'जपजी' का अनुवाद बहुत प्रशंसित हुआ है । चरखे के गीत और भाई वीरसिंह की कविताओं का अनुवाद भी बहुत प्रसिद्ध है। हिन्दी के हिस्से में जो छ निबन्ध पड़े, वे हैं-सच्ची वीरता, कन्या दान, पवित्रता, आचरण की सभ्यता, मजदूरी और प्रेम तथा अमेरिका का मस्त जोगी बाल्ट बिटमैन । इनकी व्यञ्जना शैली, भावात्मकता और मौलिकता इतनी विलक्षण थी कि केवल इन्हीं लेखों के सहारे ये हिन्दी साहित्य के इतिहास में अजर-अमर हो गये और इनकी हिन्दी के उच्चकोटि के निबन्धकारों में गणना होने लगी । प्रसिद्ध समालोचक आचार्य पद्मसिंह शर्मा ने इनकी मृत्यु पर शोकोद्गार प्रकट करते हुए इनके निबन्धों के मूल्याङ्कन में कहा है- "प्रो० पूर्ण सिंह सिख जाति के ही नहीं, सम्पूर्ण देश के एक पुरुष- रत्न थे। x x x प्रो० पूर्णसिंह केवल पंजाबी और इँगलिश के ही उच्चकोटि के लेखक न थे, वह हिन्दी, उर्दू के भी बहुत ही अद्भुत लेखक थे। उनके एक ही लेख ने हिन्दी संसार को चौंका दिया । सरस्वती में उनका पहला खेल प्रकाशित हुआ था, जिसका शीर्षक 'कन्या-दान' था और जिसका दूसरा नाम 'नयनों की गंगा' है । इस लेख की उस समय धूम मच गयी थी, यह लेख सचमुच ही नयनों की गंगा है । इसे पढकर पापाण-हृदय भी पिघल उठते हैं । इस विषय का ऐसा लेख हिन्दी में आज तक X X इक्कीस
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