निबन्धकार एवं कवि पूर्णसिंह दूसरा नहीं देखा गया । केवल इसी लेख के आधार पर हिन्दी-गद्य के एक इतिहास-लेखक ने प्रो० पूर्णसिंह का हिन्दी-गद्य-लेखकों में एक विशेष स्थान माना है। जो बिलकुल यथार्थ है । वह एक लेख ही प्रो० पूर्णसिंह के नाम को साहित्य-सेवियों में अमर रखने के लिए पर्याप्त है, हिन्दी गद्य के अनेक वृथापुष्ट पोथों से यह लेख कहीं अधिक मूल्यवान् है । 'भारतोदय' में उनका 'पवित्रता' शीर्षक लेख छपा है, वह भी अपने ढंग का निराला है। हिन्दीवालों को चाहिए कि वह उनके लेखों के संग्रह के प्रकाशक का उचित प्रबन्ध करके अपनी कृतज्ञता प्रकट करें।" , इतना निश्चित है कि पूर्णसिंह ने आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनकी 'सरस्वती' से प्रभावित होकर हिन्दी में लिखना प्रारम्भ किया होगा । उस समय ये देहरादून में प्रोफेसर थे, इसीलिए सरस्वती में इनके जो लेख छपे हैं उनमें इनके नाम के साथ 'अध्यापक' शब्द लिखा हुआ है। जैसा कि पं० पद्मसिंह शर्मा ने उल्लेख किया है इनका पहला लेख सरस्वती में प्रकाशित हुआ था किन्तु वह 'कन्या-दान' नहीं, उसके भी पूर्व प्रकाशित 'सच्ची वीरता' था। ये निबन्ध केवल निबन्ध ही नहीं है। इनमें श्रेष्ठ कविता का भी पुट है, एक साथ ही इनमें एक अोर आत्मा को विभोर कर देनेवाला भावों- अनुभावों से भरा हुआ काव्य का रस छलकता है और दूसरी ओर विचारों की चिन्तन-परम्परा बर्फीले पहाड़ों सी खड़ी हो जाती है। हिन्दी में पूर्णसिंह के पीछे इस कोटि के भावात्मक निबन्धों के लिखने में विशेष प्रगति नहीं हुई। केवल डा० रघुवीर सिंह ने ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर ऐसे भावात्मक निबन्ध लिखे, अथवा इधर नवोदित लेखकों में पुनः श्री विद्यानिवास मिश्र भावनापूर्ण ऐसे निबन्धों की रचना हिन्दी में कर सके हैं ! पूर्णसिंह के सभी निबन्धों का यह स्वतन्त्र पुस्तकाकार रूप पहली ज बाइस
पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/२२
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