पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/४३

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अध्यापक पूर्णसिंह के निबन्ध बुद्धदेव ने स्वयं अपने हाथों से हाफिज शीराजी का सीना उलट कर उसे मौन आचरण का दर्शन कराया उस समय फारस में सारे बौद्धों को निर्वाण के दर्शन हुए और सब के सब आचरण की सभ्यता के देश को प्राप्त हो गए। जब पैगम्बर मुहम्मद ने ब्राह्मण को चीरा और उसके मौन आचरण को नङ्गा किया तब सारे मुसलमानों को आश्चर्य हुश्रा कि काफिर में मोमिन किस प्रकार गुप्त था । जब शिव ने अपने हाथ से ईसा के शब्दों को परे फेंक कर उसकी आत्मा के नङ्ग दर्शन कराये तब हिन्दू चकित हो गये कि वह नग्न करने अथवा नग्न होने वाला उनका कौन सा शिव था ? हम तो एक दूसरे में छिपे हुए हैं।" गद्यशैली का प्रधान उद्देश्य प्रभावोत्पादन है । श्रोता या पाठक को प्रभावित करने के लिए लेखक अनेक प्रकार की योजनाएँ करता है जिनका स्वरूप शैलीकार के व्यक्तित्व और अध्ययन प्रादि पर निर्भर होता है । अध्यापक पूर्णसिंह की शैली इनके व्यक्तित्व के अनुरूप ही मरल एवं ग्राडम्बरहीन है । इनके शब्द कण्ठ से नहीं हृदय से निक- लते हैं और सीधे हृदय में पैठ जाते हैं । इनकी बात में सचाई का बल होता है। इनके हृदय को समस्त याँ वर्ण्य विषय पर ग्राकर केन्द्रित हो जाती हैं और स्वयं वे 'तदाकार परिणति' को प्राप्त हो जाती हैं, यही कारण है कि पाठक का हृदय इनकी रचना में रमता चला जाता है क्योंकि उसे हृदय की ही वस्तु उसमें मिलती हैं 'ज्यों बड़री अँखियाँ निरखि आँखिन को सुख होत ।' पाठकों के हृदय में भावोद्रेक करने के लिए ये ऐसा वातावरण उपस्थित करते हैं कि हृदय मंत्रमुग्ध- सा उस ओर खिंचा चला जाता है । एक उदाहरण लीजिए- "गाढ़े की एक कमीज को एक अनाथ विधवा सारी रात बैठ कर सीती है। साथ ही साथ वह अपने दुख पर रोती भी है-दिन को खाना न मिला | रात को भी कुछ मयस्सर न हुआ । अब वह एक- टाँके पर आशा करती है कि कमीज कल तैयार हो जायगी; तब एक