पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/५०

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निबन्ध सच्ची वीरता कन्या-दान पवित्रता आचरण की सभ्यता मजदूरी और प्रेम अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट ह्विटमैन ६७-८७ ८८-११६ ११७ - १३२ १३३-१४६ १५०-१५४ इस नये संस्करण में 'पवित्रता' निबन्ध भी अपने पूर्व प्रकाशित रूप में सम्पादित होकर जा रहा है । इसकी मूल पाण्डुलिपि लेखक ने उर्दू में लिखी थी, उर्दू के उच्चारण में एकरूपता न होने के कारण नागरी लिपि में छपते समय जहाँ-तहाँ वर्ण-सम्बन्धी त्रुटियाँ हो गयी थीं। जैसे-'तो' प्रायः 'तो' के रूप में आया है। ऐसे संदिग्ध स्थलों पर 'पवित्रता' निबन्ध में तथा दूसरे निबन्धों में भी सम्पादक द्वारा शब्दों के शुद्ध रूप इस [ ] कोष्ठ में दे दिये गये हैं। निबन्धों का क्रम भी इस बार प्रकाशन-काल के अनुसार रखा गया है।