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पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/५१

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सच्ची वीरता- सच्चे वीर पुरुष धीर, गंभीर और अाजाद होते हैं । उनके मन की गंभीरता और शान्ति समुद्र की तरह विशाल और गहरो, या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। वे कभी चंचल नहीं होते । रामायण में वाल्मीकिजी ने कुम्भकर्ण की गाढ़ी नींद में वीरता का एक चिह्न दिखलाया है। सच है, सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती । वे सत्त्वगुण के क्षीर-समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की खबर ही नहीं होती । वे संसार के सच्चे परोपकारी होते हैं। ऐसे लोग दुनिया के तख्ते को अपनी आँख की पलकों से हलचल में डाल देते हैं । जब ये शेर जाग कर गजते हैं, तब सदियों तक इनकी आवाज की गूंज सुनाई देती रहती है, और सब आवाजें बंद हो जाती हैं। वीर की चाल को अाहट कानों में आती रहती है और कभी मुझे और कभी तुझे मद-मत्त करती है। कभी किसी की और कभी किसी की प्राण-सारंगी वीर के हाथ से बजने लगती है। देखो, हरा की कंदरा में एक अनाथ, दुनिया से छिपकर, एक अजीब नींद सोता है। जैसे गली में पड़े हुए पत्थर की अोर कोई ध्यान नहीं देता, वैसे ही आम आदमियों की तरह इस अनाथ को कोई न जानता था । एक उदारहृदया धन-सम्पन्ना स्त्री की वह नौकरी है । उसकी सांसारिक प्रतिष्ठा सिर्फ एक मामूली गुलाम की सी है । मगर कोई ऐसा दैवी कारण हुअा जिससे इस अनजान और बेपहचान गुलाम की बारी आई । उसकी निद्रा खुली। संसार पर मानों हजारों करता ५१