पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/८३

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कन्या-दान हैं; पर उसे कुछ खबर नहीं । वह नीर भरा वीर अपनी बहन के हाथों में मेहँदी लगा रहा है। उसे इस तरह मेहँदी लगाते समय कन्या के उस अलौकिक त्याग को देख कर मेरी आँखों में जल भर आया और मैंने रो दिया । ऐ मेरी बहन ! जिस त्याग को ढूँढते ढूँढते सैकड़ों पुरुषों ने जाने हार दी और त्याग न कर सके; जिसकी तलाश में बड़े बड़े बलवान निकले और हार कर बैठ गये; क्या आज तूने उस अद्भुत त्यागादर्श रूपी वस्तु को सचमुच ही पा लिया; शरीर को छोड़ बैठी; और हमसे जुदा होकर देवलोक में रहने लग गई । श्रा, मैं तेरे हाथों पर मेहँदी का रंग देता हूँ । तूने अपने प्राणों की आहुति दे दी है; मैं उस आहुति से प्रज्वलित हवन की अग्नि के रंग का चिह्न मात्र तेरे हाथों और पाँवों पर प्रकाशित करता हूँ। तेरे वैराग्य और त्याग के यज्ञ को इस मेहँदी के रंग में आज मैं संसार के सामने लाता हूँ । मैं देखूगा कि इस तेरे मेहँदी के रंग के सामने कितना भी गहरा गेरू का रंग मात होता है या नहीं । तू तो अपने आपको छोड़ बैठी। यह मेहँदी का रंग अब हम लगाकर तेरे त्याग को प्रकट करते हैं। तेरे प्राण-हीन हाथ मेरे हाथों पर पड़े क्या कह रहे हैं। तू तो चली गई, पर तेरे हाथ कह रहे हैं कि मेरी बहन ने अपने आपको अपने प्यारे और लाइले वीर के हाथ में दे दिया। वीर रोता है। तेरे त्याग के माहाम्त्य ने सबको रुला-रुलाकर घरवालों को एक नया जीवन दिया है। सारे घर में पवित्रता छा गई है । शान्ति, आनन्द और मंगल हो रहा है। एक कंगाल गृहस्थ का घर इस समय भरा पूरा मालूम होता है । भूखों को अन्न मिलता है । सम्बन्धी मेहमानों को भोजन देने का सामर्थ्य इस घर में भी तेरे त्याग के बल से आ गया है। सचमुच कामधेनु आकाश से उतरकर ऐसे घर में निवास करती है । पिता अपनी पुत्री को देख कर चुपके चुपके रोता है । पुत्री के महात्याग का असर हर एक के दिल पर ऐसा छा जाता है कि आजकल भी हमारे टूटे