पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्या २] माय लोग कहाँ से पाये। राम उनकी पाल्यायिकानों पर विचार करते है, सैनतमुत्तरं गिरिमतिदुधाप । । । सवार। मपीपर उनका प्रचार पैदिक काल में था और जिनका लपपो मा प्रति कभीप्य तलामागिरी सामुदकमान्त स जगह जगह पर उनके प्राचीन साहित्य में पासीयापार समापात्तापत्तापदम्पपसपासीति सद वायत्तापरेवाम्पमसवरप्पेयुत्तरस्प गिरेमनारवसमर्पयामि मलता है। प्रधर्ययेद के एक मन्त्र में लिखा है- खोपो त सर्पाः प्रग मिस्बाहये हि मनुरेका लसत्र माया पपात यत्र हिमयतः शिर"-अर्थात् परिशिशिपे।।। गदी पर माय पाँधी जहाँ हिमयान की चोटी है। इसका सारांश यह है कि एक पार मनु पानी ससे इम कद सकते हैं कि कमी पाय्या ने दिमपान् सेने गये । अप ये पानी ले हे थे, अचानक उनके की चोटी पर अपनी नाप पांधी थी। पद घटना हाथ में एक मछली प्रा गई। मसली छोटी थी। पह सनी प्राचीन है कि वैदिक काल में इसका फेयल मनु से पाली-मुझे पाप ले चलिए ! मैं पाप को याद मात्र रह गया था । उसके पूर्व की किसी पार लगाऊँगी । मछली की पात सुन कर मनु को - घटना का उल्लेस किसी भी पेद-मन्त्र प्रथया मन्त्राश प्रापचर्य दुमा । मनुमी मे कहा कि तू मुझे 4 महीं मिलता। यह माय मारयों की किधर से पाई किससे पार करेगी । मण्ली में कदा-पोष से। एक पार कर पाई, इसका पता येदी के उस अंश में, जो प्रोघ उठेगा पार सम लोग इष जायेंगे। मैं उसी प्रय पच रहा है, कहीं महीं मिलता। कहने की पाय से तुम्हें पचाऊँगी । प्रमी में छोटी हूँ। मुझे प्रायश्यकता मदी कि येवो सब प्रश इस समय पार मालिया निगल जायेंगी । मनुमी ने उसे लेकर प्राप्य महीं । उनकी पनेक शाखामों का टेप हो कुम्म में रख दिया । जम पद पढ़ कर परे म म मैंट जाफा है। कितनी ही लुप्तप्राय है। शतपयमाह्मण सकी तब गड़े में रषया । पर थोड़े ही दिन में में एक स्थल पर पार्यो का जलीघ के समय माष यह इतनी पढ़ी हो गई कि यह गड़े में भी म मा कोपर घड़ कर अपने निवासस्थान को छोड़ने का यम सकी। फिर उसे समुद्र में लगा दिया । मली पाया माता है । पाण्यायिका यह- यदुत पड़ी हो गई। फिर अचानक पोय उठा और मनवो मात । भवनेग्पमुरम्मागर पंथर पाणि- चारों पर पानी भर गया। मनु ने एफ माय पर म्पामयोजनाधारपेवं तसावनेनिशानस्य मस्या पापी पेट कर अपमा प्राण पचाया। माली इसी बीच में मापे । । । सास्म पापमुबार । विदिमा पारपिप्यामि देख पड़ी । मनु ने अपनी माष की रोरी की मछली ति, परमामा पारपिप्पमालीप मा सात प्रमा मिस की पीठ से बापा । मज्ळी उपर की पोर पली सवा पारपिधम्मति से भूतिरिति । २ । पाप पार पर्यत पर पची। यहां मनु ने अपनी भाव को तिका मामो नही भगवणा भक्पुत मस्य एवं माली की पीठ से घोल फर बांधा । यहाँ से ज्या 'माय गिति इम्म्यामाने विमरासि, स पदा तामतिवर्षा ज्यो पानी खिसकता गया, नाप मी सिसफवी ग्भप क सावा तस्यो मा मिरासि सपना चमतिवर्ण गई। उसर के पक्षा, पर जिस स्पाम पर माष यच मा समुनमम्पपारासि पद पाठमतिनाने मविता- । स्मीति ।। रापद पप पास । सम्मेिएमईले ज्येति मिसक पार पहुंची थी उसे मनु का प्रयसर्पण कहते - सो ताप पागता तम्मा मानमुपचाप्पोपामा सीप है। उस पोप में सब प्रमा इष गई थी। मनु अफेले रित्पिते नाबमापपासपी सत्या पारपितास्मीति।।। तमेवं कर रहे थे। हमा पमुममम्पमपार । सपतीपी ससमा परिरिषण तविधी इसी कथा का पर्णन पुराणों में मत्स्यावतार के CH सम्म भावमुपभोपासा सीप परिपतनाबमा सम्पन्ध में किया गया है इससे यह स्पष्ट प्रतीत समस्प पम्पापुपाये जमनावा पारी प्रति मुमोच होता है कि मार्य छोग कहीं दक्षिण के रहने वाले