पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२०९

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सरस्वती। . . भाग १ और न उसी का ओ धान के विकास के अन्त की है। इससे यह भी सिर होगा कि सीधारमा निरना होगी। सामोदय पोर मान-समाप्ति की अवस्थामो में बनी रहम पाली चीज है, क्योंकि विधर किसी पीन से किसी का भी प्रत्यक्ष-पान महीं हो सकता स्मरण केही हो सकते है। मास्तिकों का यह मत किये। शक्ति के मारा हम पीछे की कितनी ही बातें क्यों समय पार विचार होते है यही सत्य है, जिस पन्त म याद करें, परन्तु हम यह महों जान सकते कि करण या मम में घे होते ६ वह कई बीज महो पहले पहरू अय पाप क्षामा पारम्म एमा या तब फेपल कोसखा है। यह ठीक नहीं, क्योंकि रिमा . कौन सी अवस्था थी । यह अनुमाम करना भी प्राधार के समस्य-विकल्प का होमा असम्भव है।म। सर्पया पसम्भय है कि इस पानावस्था कीला नास्तिक-मत में परस्पर विरोध है । जब किसी घी का पन्त, कमी न कमी, पागे खाकर हो जायगा। में प्रात्मा या जीप ही नहीं मानते, केपस सामा उसका अनुमष ही नहीं हो सकता । क्योंकि जिस विफल्मों ही की जीप मानते हो, तब यह पर अवस्था को हम अन्स की सममेंगे यह अन्त की सकते हो कि हमारे भी कोई सास पर रिसर . म होगी, किन्तु उससे पहले की होगी। क्योंकि जिसे है।सब सत्यों को सस्य मान लिया तप यहसास हम धाम की अन्तिम अवस्था समझेगे यह तो उस कि 'मैं कैसे मुठा माना जा सकता है, अपस्था का अनुभय करने में, जो अभी ही पुकी है, अपने प्रस्तिस्य का पिझ्यास तो सब की. चली जायगी । इस सरह न तो हम इस टला परन्तु यह वास युसि से सिर नहीं हो सकी। का पहला ही सिरा जान सकते हैं पार न पिण्ठा यह कोई नहीं कह सकता कि जैसे गुप-समूह २ ही। बरन का परिमित समझना यधपि हमारी धुरि माम मफति है वैसे ही विचार समूह का मामा भी के पाहर की वास है, तथापि ऐसा अनुमान मन है।हान-माप्ति की रीति पिचार से या मिर किया ण्यश्य जा सकता है। सारांश यह किन हो हावा है कि ज्ञान प्राप्त करने में दो धीमा की पान को हम अनन्त ही माम सकते हैं पार म पन्त पापमयकसा है-पक तोहाता की, दूसरे पेपर। पाला ही। पर इतना प्रनुमान अमर कर सकते है कि प्रर्थात् एक तो उसकी जिसे मान प्राप्ति हो भर मह अनन्स या अपरिमित नहीं किन्तु परिमित है। दूसरे उसकी जिसका मान प्राप्त किया जाय । सिमरा प्रवास पात का विचार कीथिए कि पाम है मान प्राप्त किया जाता है उस पस्तु की यदि प्रामा पयाची । प्रत्येक मनुष्य को अपने हाने का पूर्ण या जीव माम लें तो भान करने यासा काम होगा। नियास है, पार इस सत्य को समी विमानचा यदि पान फरने पाहीको प्रारमा मान ताका ने मामा है। जब तक मानसिक दशा ठीक ६ तव प्रात्मा कोम सी है जिसका मान प्राप्त किया जाता सक अपने होने में कोई सम्मेह मही कर सकता है। इस दशा में अपने होने से सम्यग्य रतने पास प्रथ यह बताए कि जिन सरपों पर विचारों से पान का यह पर्थ है कि पान माप्त करमे पारा. बाम बनता है ये क्या है? क्या पे मनाधिकार है! धार मिस चीज़ का भान यात किया आप मह- पेमम में उत्तम होते हैं, इस लिए जिसे मन कहते ये दोनों एक ही हैं। अर्थात् अपने दाने का निश्चय क्या उसी का माम जीय है? 'हो' कहने से यह करने में माता पार य एक हो जाते हैं। परन्तु सिर होगा कि सीप कोई स्पतन्त्र चीन है। प्रथया विधामयेतापों के मत सं यह बात मर्पपा दिलर यह कि सास मार पिधार मन या सीप के विकार है। क्योंकि मारमा पद जिस मान हाधिकार नहीं, विस्तु जीव की रचना के कारणीभूत पदार्प पेवा भारमा का यही समय नाते हैं।.पी