पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२०८

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संख्या २]

हर्ट स्पेन्सर की प्रमेयमीमांसा । १२५ में दोपहिस नहीं ६, पयेकि ये स्याली प्राफाश के प्रकृति के परमाए प्राकाश के द्वारा दी मापस में , द्वारा एक चीज़ का असर दूसरी चीन पर होना एक दूसरे पर प्रसर बालते हैं। बताते हैं। इस कमी की पूर्ति के लिए इन पिठानों (२) उससे यह भी सिद हुपा कि प्रकृति के का कपन है कि एक प्रकार की द्रघयस्तु परमारों परमाणु एक दूसरे पर पीर सम परमास पर प्रथया शक्ति के प्रमुमों में होती है। उसी पस्तु के भी एक ही सा पाकर्प-प्रमाय रासे ६, चाहे द्वारा एक परमाणु दूसरे परमाए पर असर पीच की जगह भरी हो चाहे साली है । सदाहरण- सालता है। प्रया, तो यह द्रप पस्तु क्या है। इसका पक सेर के पोट को पाप ऊपर की पोर उठाइए। उत्तर देने में यही फटिनता उपस्थित होती है जो पृथ्वी पर काट के बीच का स्थान खाली है। यह परमामुमों के रूप बताने में उपस्थित हुई थी। बीच का स्थान चाहे स्साली छोर दिया जाय चाहे यदि पातिपशारन के विचार से देखा आय सो यह किसी विस्म की पीजों से भर दिया जाय, पर भोट सर पार भी विकट हो सा है। सूर्य से हमें की माफर्पण-शफि में कुछ भी पम्सर म पड़ेगा। प्रकाश पार गरमी मिलती है। सूर्य से पृथ्यो तक पृी का प्रत्येक परमासु इस पांट पर पक सा पहुँचने में प्रकाश को ८ मिमट लगते है। इसमें दो असर गलता रहेगा। पीच में चाहे कुछ हो चाहे म पाते कारणीभूत है।(१) शक्ति पार ( २) गति। हो। ८००० मील की गहरी पृथ्वी के उस पार पाले सूर्य पार पृथ्यो के बीच ९,२०,००,००० मील का परमास भी इस पॉट पर एक सा माफर्पक प्रमाष प्रातर है। यह अन्तर शून्यमय है। इस शुन्य में शक्ति सालेंगे।बोट पर परमासु के बीच में कोई बीज का प्रयोग होना समझ के बाहर है। बढने पाली है या नहीं, इसका कुछ भी प्रसर उस पार्य- चीनदी की पाल होती है। प्रचल की चाल महीं शक्ति पर न होगा। दा सकती। परन्तु यहां चसमे पाली काईथील महीं। सापेश यह कि मतो हम शक्ति के रूप का भाकर्षण शक्ति के धिपय में म्यूटन मे लिया है कि शान प्राप्त कर सकते हैं पीर न इस बात का कि मम तक दो पस्तुषों के बीच कोई ज़रिया महीं होता उस शक्ति के बस का किस तरह प्रयोग होता। तब तक एक चीज दूसरी का पाकर्षय नहीं कर इस लिए शक्ति भी प्रक्षेय है। सकता । कसना कीजिए कि यह चीज़ स्यालिस ज्ञान या मन (Consciousness or Jfind.) हवा (Ither) है, जो बहुत छोटे अटे परमारों की कमी है। यह मानमे पर मी परमारों के पीच प्राकृतिफ पस्तुयो का षिचार दाड़ कर अब हम शून्य का प्रभाव नहीं होता। शूभ्य या अन्तर पाहे मन के विषय में लिखते हैं। बाम की अनेक प्रय- पोड़ा हो चाहे पास, रहता अवश्य है। प्रतएष स्थायें हैं। इन अषस्थायी की कल्पना एक वाला छाचार होकर हम मानना पड़ता है कि प्रकृति के रूप में कर सीमिए । अब प्रम यह है कि यहाला के परमाए पाहे मारी है। चाहे हलके, चाहे छोटे अनन्त है या साम्त । अनन्त तो हो नहीं सकती। हो चाहे , माकाश केशारा ही एक दूसरे पर क्योंकि प्रमन्त पस्तु की कल्पना ही नहीं हो सकी। प्रसर रास्ते हैं। परन्तु यह बात ऐसी है सो ध्यान यदि साम्स मानते है तो यह भी सिर मही, क्योकि ही में महीं पा सकती। इस कला के दोनो परो में से एक का भी प्रत्यक्ष जान नहीं । अर्थात् म तो हम इस अवस्था का पाप (१) पूर्वोक्त विचार से पह सिय मा कि कर सकते हैं जिससे कि हमारे शाम की उत्पत्ति,