पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२११

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सरस्यती। । [ भाग १७, पौर म उसी का ओ पान के विकास के पन्त की है। इससे यह भी सिर होगा कि मीषामा निरन्तर होगी। शानोदय और ज्ञान-समाप्ति की प्रथस्यायों में बनी रहने वाली चीज़ है, क्योंकि विकार किसी पीज से किसी का भी प्रत्यक्ष-यान नहीं हो सकता । स्मरण- केही हो सकते है। नास्तिकी का यह मत किसे शक्ति के द्वारा हम पीछे की कितनी ही वाले फ्याँ सास पार विचार होते है पही सत्य है, जिस पन्तः म याद करें, परन्तु हम यह नहीं जान सकते कि करण या मन में ये होते है पह का पीछामी पहले पहरू जब योध होना प्रारम्म हुआ था तब केवल दोसला है । यह ठीक नहीं, क्योंकि पिम्म कौन सी अवस्था थी । यह अनुमान करमा भी प्रापार के समल्प-विकल्प का होमा असम्भव है ।मः सर्यया प्रसम्मय है कि इस पानाषस्था कीला नास्तिक-मस में परस्पर विरोध है । सब पिसी पीठ का पन्त, कमी म कभी, भागे जाकर हा सायगा। में प्रास्मा या मीप ही नहीं मामते, फेयस सास उसका अनुमय ही नहीं हो सकता । पाकि जिस पिफल्मों ही की जीप मानते हो. सब यह कैसे । प्रयस्था को दम भन्स की समझमे यह पन्त की सफत हो कि हमारे भी कोई सम्म मार विगा म होगी, किन्तु उससे पहले की होगी । क्योंकि जिसे हैं। जब सारूपों को सत्य माम लिया सम यहसार हम शान की अन्तिम अवस्था समझेगे घर तो उस कि 'मैं है', कसे झूठा माना जा सकता है। अवस्था का पनुभव करने में, जो प्रमी हो चुकी है, अपने प्रस्तिस्य का विश्वास तो सब का ८.. चली जायगी। इस तरह न तो हम इस रङ्गला परन्तु यह बात पुरि से सिर महीं हो सकी। का पहला ही सिरा मान सकते हैं पीर म पिछला यह कोई नहीं कह सकता कि जैसे गुम्समूह का ही। धान की परिमित समझाना यद्यपि हमारी धुरि माम प्रति है पैसे ही विचार-समूद का माम में के बाहर की बात है, तथापि ऐसा अनुमान मन है । मान-प्राप्ति की रीति के पिचार से यह किया प्रयश्य मा सफता है। सारांश यह कि न तो होता कि पान प्राप्त करने में दो पीजों से सान को हम अनन्त ही मान सकते हैं पार न प्रम्त प्राथश्यकता है-एक तो पाता की, दूसरे प्या पाला दी । पर इतमा अनुमान जरूर कर सकते हैं कि अर्थात् एक तो उसकी मिसे पान प्राप्ति का और यह अनन्त या अपरिमित नहीं किन्तु परिमित है। दूसरे उसकी जिसका माम प्राप्त किया जाय । मिसन प्रम इस बात का विचार कीजिए कि पान है माम प्राप्त किया जाता है उस घम्तु कोम पर क्या चीज़ा प्रत्येक मनुप्य को अपने होने का पूर्ण या जीप माम सें तोशान करने वाला कान हो। विदयास है, और इस सत्य को सभी विधानवेशापों यदि शान करने वालेहीको मारमा माने तो में माना है। जब तक मानसिक दशा ठीक है तब प्रारमा काम सी है जिसका पाम मात या जाता तफ अपने दाने में कोई सन्देह नहीं कर सकता है। इस दशा में अपने होने से सम्पाप रपने पाते प्रा यह बताइए कि जिन सो पार सियारों से मान र यह प्रर्य ६ किमान प्राप्त करमे पापा पाम पनता ये पपा है? क्या ये मनाधिकार है। पौर जिस चीज़ का गान प्राप्त किया जाय यह ये मन में उत्पप हाते ६.इस लिए जिसे मम कहते थे दानो एकदी है। प्रर्याद अपने दाने का नया हैं क्या उसी का माम जीप है. कहने से यह करने में माता पार य एक हो जाते है। परन सिरांगा फिजीष कोई स्पतन्त्र पी, पपया पियामयेत्ताप के मत से यह बात सर्पया पिष्ट : यह कि सस्प पार पिचार मन या जीप पिचर है। क्योकि पारमा यद जिसका मान हापिसात मही, तिकीय की रचमा के कारणीभूत पदार्थ पेशा भारमा का यही क्षण माते ६सता