पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२१२

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संध्या २] थियिष पिपय। उससे सर्वथा अलग है। यदि यह पात मान ली माय हो सकता है कि उनका असली रूप क्या है और न तो पारमा का मान ही नहीं हो सकता। यही कि घे उत्पन्न कैसे हुई है। इस खोज में मनुप्य सारांश यह कि पैमानिक विपयो का मूल की सय चेपायें निप्फष्ट होती है। लाचार होकर प्राधार कुछ विशेष पस्तुयें हैं। उनके यिपय में यही मानना पड़ता है कि युखि की सीमा पहुस यह तो स्वीकार करना पड़ता है कि ये सत्य प्रयय प्रल्प है। पुदि केवल उन्हीं विपयों को ग्रहण कर है। पर साथ ही यह भी मानना पड़ता है कि घे सकती है जिनका अनुमय हो सकता है। उम तान का विषय नहों । कितना ही परिश्रम क्यो म चिपयों को यह नहीं मान सकती ओ अनुमय के किया जाय उमका शान दो ही नहीं सकता । संसार परे हैं। किसी चीज़ के असली रूप का ज्ञान होना में, पार अपने मन के भीतर भी, निरन्तर ऐसे परि- सर्यथा असम्भव है। पर्तन होते रहते है जिनका साधन्त हाल मानमा (प्रसमाप्त) सम्मय है। उसमें युरि महीं काम करती । यदि कामोमल, पम० ए० यह माना जाय कि पहसे संसार फैली दुई दशा में या, पर्यात् यह छिन्न-मिन था, तो यह यताना कठिन विविध विषय । है कि यह फ्यों ऐसी दशा में था । यदि इस बात का पिचार किया जाय कि मयिप्यत् में संसार का क्या -वर्तमान युग में ब्रिटिश गयर्नमेंट का स्पर्च। रूप होगा, तो सो घटनायें और दृश्य निरन्तर होते रहते हैं उनकी अन्तिम सीमा चाँधमा दुःसाध्य है। A t गत 10 से इस महा पुरको हवे कोई रेक बर्ष हुमा । पापप दिनो मन के भीतर का हाल देखिए । उसकी परीक्षा से र दिन और भी मीपय स्प पारय करता प्राप को मालूम होगा कि मान-दशापों की हाला साता ममी तक इसमें बालों इसनी अपरिमित है कि उसके दोनों अरों में से एक - पापमी प्राव को खुके और भयो रूपये पर भी टिमही प्रहण कर सफसी । किसी सो पुरेपुर-विपया समीरो के सर्वत्र ऐसा तो चीन का असली रूप यदि हम जानमा चाहें तो सात महीं, किन मिटिश गवर्नमें केस का रोग प्रमाणित बार मयत करने पर भी हम नहीं जान सकते। मा।मिरिरा गर्नमर का सर्च इस समप इतना अधिक याद हम सब यस्तु कोस्टादे घटाते किसी शक्ति है कि इस पर साधारण भादमियों को निभास माहीं हो पिराप तक पहुँचेपार उसका पायाराकाश तथा सम्ता । मिरर एस्पिय (fr. Aquith) पना- फास माने तो यह करिता उपस्थित होती कि मुसार रसका प्रति रिनमर्च ३१.०... पीर पर्यात् शकि, प्राकाश और काल इनमें से किसी के भी पांच करोड़ पच्चीस पास कश्या । पर पाठक मामले की रूप का नित्यय महीं हो सकता। इसी तरह यदि होगे कि एक पौर ५ सपे कामोवाइस हिसाब से सारे मामसिक कार्यों को घटाते घटाते उनका प्रसि बरे का स ... और प्रति मिनिरास, ४५८ रुपपा एमा । मा आमने कमी ऐसे प्रयाकुब स का भाधार समय पर विचार मामले हो यह क्तामा अनुमान किया है! प्रसम्मय होगा कि समसविकास क्या चीज़ है हमारे यहां के एक साधरप रबाड़े की साम्ब भर पार पछ . क्या चीज है घिसमें सम्पथिकल्प उत्पन की प्रामवमी निरिय गवर्नमरको जमिनये पायें हीरे -होते है। इसी कारण माहर-भीतर की जितनी पिए पुरन में सस्ती है। एक सपा रोख पानेवाले । मृगपार पी है उमके सम्बन्ध में मतो यही माम सवा पांच मोड़ मनुष्यों की दिन भर की कमाई में भी