पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२५८

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इंडियन प्रेस, प्रयाग की सर्वोत्तम पुस्तकें * कर्तव्य-शिक्षा माशा है, हिन्दी-प्रेमी इस पुस्तक को बड़े धाव के मर्यात् साथ मैगाकर पढ़गे पोर अनेक लाम उठाऐंगे महात्मा घेस्टर फील का पुत्रोपदेश। मूल्य १) एक रुपया। (मनुवादक- पीधरनाय मह, पी. ५०, माश) राजर्षि। हिन्दी में ऐसी पुस्तकों की बड़ी कमी है जिमको हिन्दी-अनुरागियों को पह सुन कर विशेष हर्प पढ़ कर हिन्दी-भाषा-भाषी पालक शिष्टाचार के होगा कि श्रीयुत पार्षीम्नाय अकुर के "पंगला सिवान्तो को समझ कर मैतिक और सामायिक राजर्षि" उपन्यास का अनुपाद हिन्दी में दुपाप छप- यो काम प्राप्त कर सके। चाहे कोई कितना कर पपने प्रेमी पाठकॉकी प्रतीक्षा करास जीवितान क्यों नही, यदि उसको सांसारिक नियमो ऐतिहासिक उपम्मास के पड़ने से पुरी धासमा चिच काबान महाँ, यदि उसकी मैतिक और सामाजिक से दूर होती है, प्रेम का निधण्ळ माय प्य में उमर रीतियों का पोष महों तोवणुरहित सुपो के समाम पड़ता है। हिंसा-रेप की पाटो पर प्रणा होने लगती इसकी विश्चा निप्पयोजन है। हमारी हिन्दी का पार चे चे खयालात से दिमाग भरावा है। पालका पयोगी साहित्य ममी ऐसी पुस्तकों से खाली इस उपन्यास को सी-पुरुप पानी निसामेष भाष से पहाईसी प्रभाष की पूर्ति के लिए हमने यह पड़ सकते है और इसके महान उदय को मसी- पतक मैंगरेजी से सरल हिन्दी में अनुवादित करा मांति समझ सकते हैं। उपन्यास पढ़ने पर जोहर्ष कर प्रकाशित की है। होगा, जो शिक्षा मिलेगी पीर मा पय में पवित्र माय सो लोग अपने वालको को कम्यशील बनाकर का संचार होगा, उसकेमागे इस इतने बड़े प्रोमस्वी नीति-निपुण और शिराबारी घनामा चाहते हैं उनको उपन्यास का ) पाना मूल्य फुछ महीं के बरापर "तष्प-शिक्षा" की पुस्तक मैंगा कर अपने मालकी ही समझना चाहिए। केहाय में जबर देनी चाहिए। बालकों को ही नहीं, सचित्र । यह पुस्तक हिन्दी आननेवासे मनुष्यमात्र के काम की है। पामे तीन सौ पृष्ठ की भारी पाथी का मूल्य फेयक शरीर और शरीर-रक्षा । पमित सन्दमालि सुकुम, पम. ए. की लिपी एक रुपया। किता कैसी पी और कामप्रद होती है यह प्रकृति । भवाने की ज़रूरत नहीं। जिम्होंने उनकी लिखी यह पुस्तक पणित पमेन्द्रसम्दर त्रिवेदी, एम. किताबें पढ़ी ६, .प मानते होंगे। यह पुस्तक ए.कीगमा प्रहति'का हिन्दी-अनुयाद है।गला मी उन्हीं पणित मी की कलम की करामात 1 में इस पुस्तक की पात मतिष्ठा है। विषय वैज्ञानिक इस में शरीर के बाहरी ष भीतरी प्रहों की बनावट से गये। है। हिन्दी में यह पुस्तक अपने गकी एकही है। तथा उनके काम प रमा के उपाय इस पुस्तकको पढ़कर हिन्दी सामनेवालों को अनेक इसमें ऐसी मोठी माटी बातों का वर्षमा दिया गया पर ऐसी सरस भाषा में लिया गया है, कि हर SH विधाम-सम्माधी मातो से परिचय हो जायगा। इसमें एक मनुष्य पद कर समझ सके और इससे लाम सार जगत की उत्पत्ति, पाकाशतरंग, पृथिवी की पा सके। मनुप्प के अपराषयव-सम्बन्धी २१ मित्र Prit पायु, मस्य पार्यकाति, परमाण, मख्य प्रावि, १४ मी इस में छापे गये है। यह पुस्तक सर्वया पा. विषयों पर पड़ी पचमता से निपग्ध लिने गये है। रेय है। मूल्य केवल । भाने है। एमिनेमा वा-मेनेजर, इंडियन प्रेस, प्रयाग ।