पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/४०५

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- २४४ . . . . सरस्पती। - [भाग। मनुप्य सिए निरकुल दी प्रसम्मय है।। महों येनारे पर भी तास यह पात पाप स्वयं सोच सकते हैं। पर, एक नावाद! जानें कहां राशकारी फिर भी. मुझे प्रापस मिल कर बड़ी प्रस- याद गीत सोम प्राय । प्रामने इन मते मता हुई । माशा करता है कि प्राय की बात में पार. मुमै दिदी साल में मार कभी कभी मिला करेंगे।" . कराया।" . , . , ... " यह कह कर पादरी साहय घड़ी दंमत हुए, "पावासी. यहाँ कीरापफारिकीसमा कात . पुरसी पर में उर पेठे। बा साहब भी उठ फरमगर-कीर्तन था। उसी में लोग यो गाई": - पार-मिलामे के लिए साहप का हाथ बढ़ाता हुआ "गुप्तरकी देमुपकामों समा माफर : देख कर भी घयरा कर "गुठ-पति" कहते हुए . तम से या मतलप? तू पपने काम में मा झट बाहर निकल पाय पार अपने घर की भार बार प्रम पर्यायम्र का नाम लिया : मल दिये। गावू साहब इन शतों को श्शन मेमन ग्रे धित-रदय काशलकिशार ने प्राज शाम को इस समय उनकषय पर दमा क्यापी, सी . म्याद भी नदी की। जब माने के लिए भाट पर हिन्दुस्तान के किसी पटे पुराने माली मे पा सेंट तब उन्हें कभी मरवार को पार कमी हिन्दी सकते। फो कोसता गुमादेन कर निदा भी उनसे पीठ फेर ___. . पदनापमा गांफरपरें यदटते पद पावू साहय निदाको भी कोसमे ही पाले थे कि इतने में पदासी टासा यापदायों का स्वागत ! रामगोपाल के यहो में कुछ गामे की सी पायाज़ मा बिसयदलाय के लिए पापू मादप में भी पर न मुझे माया, पार पापा। प्रपमा ग्यान उपर लगाया पार यह मुमा-- 'मादम, मुरम तिमी पनि किनारे

। पेमन ) मे मा विणाया। घरबार रेन कर. सापा, - मागी, पाण! पाग! 'फेरान की मुरम से मारस का पन-दुर्ग गाण ॥१॥ : (१) दिन मा हिन्दी को रा. मी मर मुझ रामनारमिंद वम बार- - मात्-मदिवस पंच पड़ा। _fe मग बमा मानहानिar मपनापन संदर हराया म मुमो पाnt - भागे सगा पराया NEnre भागी in orm भामा ! ' : - तन मन मय शानिया, . यो मागमा पाईma .. भारत की दुशा वहां . : कि या भागारम 'rm.arma ___. प्रपनमकमागर में .. मान गरेमा।' . नगारपान ME HTर . am ! ! ....... माणसाने मी ई . . . . ( ... पर मोहर पापार रेप पापंगा कमी प्रमामा मरे a sunet, गुपया : कग है. पेगा - Hamra THAProd