पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/४०४

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संख्या ] हिन्दी का काम चैन संभालेगा! २४३ सप विषयों की पढ़ाई देशी भापायों में दिन्दू ताईम १ (मुसकरा कर) क्या कदा! कराने का मकन्य करने में कठिनता अवश्य . भापको अपनी मातृभाषा मही माती ! इस पोगी। पर साठये पार पाठवें दरले पर कान विश्वास करेगा ?" के इतिहास, गणित, भूगोल तथा अनु- पासू-"शुरू से ही मेरे यहाँ उई का अधिक प्रचार । याद-पे विषय प्रापके सुपुर्द कर देने से रहा है।" ही, मैं समझता है, काम वसपी थल साहए-"अपनी भाषा को पाप बिलकुल ही मायगा । मैं सोचता है कि हिन्दुस्तामो छाई ठेअगर ऐसा होता ही प्रास में इम विषयों को प्रापसे प्रच्या हमारे यहाँ इंगलिस्तान में अंगरेजी की अगद सेटिन । कोई भी न पढ़ा सकेगा । इमारे हेट-मास्टर पार प्रीक ही दिखाई देती । क्यों जी, भी, जो सजोकार प्रादमी है, इस विषय मारतयासियों को क्या अपनी मातृभाषा में प्रापकी मदद करेंगे।" सीसने के लिए भी फुरसत महीं। जिघर मापू-पपराहट के साथ) "मैंने केवल पास तक देखिए उधर ही पाप लोगों की बाते में ही उर्दू पढ़ी थी। अभ तो सप भूसमाल कुछ न कुछ विधि प्रता-पिचित्रता क्या गया है। मेरी राय में पाप गरेकी ही में पन्धेरमाता-दिवाई खा है। फिर भी अपमे यदा पढ़ाई जारी रत्रिए।" मारतयासी यफील 'स्यराम' मांगने मे याज सादव--"सरकारी पाशा के यिगय मला हम कैसे नहीं पाते।" काम कर सकते हैं? मैं सयाल करता है वापू-कुछ घराहट के साथ)-"मैं मैगजी का कि, उर्दू महीं, तो हिन्दी भाप प्रयदय तो सप काम पपषी ममाल सकता था-" पादत प्री मानते गि। हमारे मदरसे में साइय-"हो सकता है. लेकिन दिदी का काम उर्दू पढ़ाने का प्रभाव इस सास कुछ गड़यह फिर फोन संभालेगा ! (पावू को चुप है। पुराने मालयी सादव का इन्तकाल देश फर) क्या प्राप कृपा करके कोई ऐसा हो गया। इस कारण अधिकतर लाको मे प्रेजपट पतलापेंगे जो दिन्दी की काम हिन्दी ही टेली है। क्योंकि अभी तक हमें संभाल सके १.बी० ए० पल से भी दमारा कोई प्रण माछपी नहीं मिला। म हाल काम चल जाएगा। पर हिन्दुस्तानी भाषा में मिलने की उम्मेद दी है। हाईस्कूल हो का सामान रम्मता हो। मुझे शोक साने पर तो प्रयाय सम प्रकार का उत्तम फिप्राप-" मपन्य करना दोगा। पर प्रमी घेसी कुछ पा-शिरम से मोची गरदन कार्फ) "मोगा। प्रायश्यकता भी नहीं।" मता इमी उम्मेद पर पाया था कि-भगरती पाद--(उदास होकर) "चोफ ६, मुझे हिन्दी महाँ का तो सब काम वनधी सभाल सकता। पाती। मैं मैंगरेजी का सत्र काम मैमाल प्राज फल मरी पार्थिक प्रशां भी उसमी हँगा।" सन्तोषजनक नहीं।" सारच-(प्रारमय से. कुरसी का सहारा त साहब-"मिस्टर विशार ! मुमें पाए माघ पूरी दुप)-"क्या प्रापको दिपी माही भावी ! सदानुभूमि है, पर क्या कर सरकारी (मामबाई की पोर यता दुपा) अप पामा के प्रतिकूल चमना मेरी स्थिति पामे