पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६०२

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इंडियन प्रेस, प्रयाग की सर्वोत्तम पुस्तकें . कादम्बरी। स्वर्णलता। यह कषिपर गाथमट्ट के मर्वोचम संस्कर- रोचक, शिधादायक मार मामाजिक उपन्याम मक ११८ धक १४ न्याम का प्रत्युत्तम हिन्दी अनुवाद, प्रसिर हिन्दी- कि स्वर्गवासी बापू गदाघरसिंह वर्मा ने किया संस्करण हो चुफ थे। इसी सं प्राप इस उपन्याम की । फसकपा की यूनिमर्सिटी मे इसको एफ० ५० उपयोगिता का अनुमान कर सफवे हैं। मंगला में इम पके कोर्स में सम्मिलित कर लिया है। दाम II), उपन्याम की बड़ी प्रविष्ठा है। पुपन्यास क्या इस सम संसद में पुस्तक को गृहस्थामम का मशा सा समझना पादिप । हिन्दी में इसके बाद का प्रमी तक का गीताञ्जलि। उपन्याम नहीं निकला। को मारो पोपी मूल्य १) रुपया। का दाम केवल १७ मवा रुपया। माधवीकंकण । सफर भी रवीन्द्रनाथ ठाकुर की पनाई गई वा अस्ति" नामफ मैंगरजी पुस्तक का संसार में मिस्टर प्रार०सी० दच निम्मित' 'माधान" हा भारी मादर है उस पुस्तक की अनेक कवितायें। बारोपक पहा शिक्षादायक और पड़ा मनारम्भक पता गोवालि में क्या पार भी कई पंगता की। । यद उमी का दिन्दी अनुवाद दिय-दारिपी वकों में छपी हुई। उन्हीं कविताओं को इफटा पटनामों से भरपूर है। बार भीर कय्या मादि प्रनंक रसों का ममारा इममें किया गया है। पपन्याम का एक दमनं दिन्दी-मरों में गांवाचलि' पाया इंश पपिए पार गिसादायक है। मून्य ) । जो महाराय दिन्दी मानते हुए मंग-मापा-माधुर्य रमास्थदम करना चाह है उनके लिए यह पई मुकुट । म की पुनक है। पद पंगला के प्रसिद्ध संगम मीरपीट कापू के मंगना उपन्याम का दिन्दी अनुपाद६ मा माई विचित्रवधूरहस्य । में परस्पर अनबन होने का परिणाम अन्त में गता के प्रमिस सेगक भीरपांन्द्रनाप ठाकुर क्या होता है। यही इस घाटे में उपन्याम में बड़ा परिपत "पलाकरानार दाट" मामा गला . विवा के माप दिग्गलाया गया है। में पद कर पाग का या हिन्दी अनुवाद 'पिपिप्रयभराइस्या लोग अपने मन को धमनम्य के दाम में पपा मक

नाम से सैयार हो गया उपन्याम फिक्ना रोपफ मून्य ) पार माने।

, इसकी पटनायें जितनी महायपूर्व ६, उपन्याम उपदेश-कुसुम ।। भाव मा उत्तम ६, पाठकों पर इमको कपा र गुलिस्ता पाठ पाप का हिन्दी- मा प्रमाप परता इत्यादि गते सम्पास मापार । यह पदने मापक और गित टनको म्पर्प विदित हो जायगी । मून्य ) दापक है। मुम्प) पुस्तक मिमने का पता-मेनेजर, इंडियन प्रेस, प्रयाग ।