पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६०९

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३६२ सरस्वती। minior माफमय से पचाने के लिए ज्यान देना भी हमारा साति पर, म घम पर पास सग यानि कर्वन है। युर में केयल राजा पर राज्यपुरुप ही प्रोटेस्टेंट, मादि धर्मायलम्वी पीछे होते है। अगर माही, किन्तु हम सब को सम्मिलित होमा पाहिए, फपसीसी, अमेरिफम प्रादि पहले । मुना गयो इत्यादि । यह विशेपता इसी समय की है और इस कि जापान में एकही घर में कमी कमी मा . विशेषता का पूर्ण परिचय माज यूरप के देशो में देख पिता धोख पार पुत्र ईसाई होते है, पर सब प्रेम से पड़ता है। पहले जनसमूह का बन्धन धर्म या पन्य' रहते है।. भफि के विचार से होता था पर यह पात माहीं। समय की ऐसी गति होते हुए भारत, सप्तप्रियसा, फर्तय तथा स्यत्य प्रादि का किसी दूसरे लिहाज से अपनी राष्ट्रियता का विचार किसी भूमि पर निषास करने ही से प्राज स्थापित कर सकता । आठीयता पर दे। कल इवमा पढ़ गया है कि माधुनिक देशों के : प्रियता कवि था पोर देख पाई है। अब पापस के समझाते के नियमानुसार यदि कोई मम प्रब यह उपस्थित हुमा है कि किस रिका.. मनुम्य दूसरे देश में आय तो इसमें पैर रखते ही किस माद, किस लिहाज से यह आतील यहीं के निवासियों के परापर उसके अधिकार थापित होनी चाहिए। .:, :.: पादि हो जाते हैं।पए मनुष्य अपने घर के कानूम का इस प्रभ का पथेट उत्तर देने के लिए पुर: छोड़ कर उस देश के कानून का पालन करता है। समय पार पात जगह दरकार है। भतरपन उदाहरणार्थ, देखिए, फरासीसी पेश में यह म्याय- अपना निषेदन पोही में करेंगे। पारस विस्य महीं कि वो मनुष्य अपने झगड़े को भापत में एक प्रमुख प्रकार का भ्रमजाल सा फस गर में यन्द्रफ या ससयार से सह कर करें। परन्तु है। हमें चाहिए कि उसे दूर करें । जब हमने च यदि दो फयसीसी इस प्रकार से अपना झगड़ा मान लिया कि इस भूमि पर रहने दी से हम इस मद सम्बम में से परमा पाता उम्हें जेल भोगना पड़े, से घसे गये है तब इसकी सेवा करना इमाय क्योंकि पहा पेसा करमा न्यायपिस्या है। यदि पै मुख्य कर्तव्य हो गया। इसके पाद हमको सा दो फरासीसी म्पायाधीश से कई कि हमारे देश में का पिधार करना चाहिए कि दम दिम्यूई म मुस यद नियम-पिस्न मदों, हम न जामते थे कि पाप के माम, ईसाईया पारसी, इस्पादि । विधार पर यहां यह ममा है, वो भी न्यायाधीश उनकी बात से यह मतलप नहीं कि अपनी अपनी माविका म सुनेगा। जिस सम मापने प्रेट-प्रिटम में अपना पैर रहन-सहम के आ यिशेप नियमादिदम ग' गया उसी सण से पाप अंगरेजी म्पाय के प्रधि- दें। तात्पप्य सना ही है कि देश के हित के लिए! कार के भीतर मा गये, ममभिमता के कारण मापसी कुछ फर्वभ्यो उसमें अपने अपमे पन्य या शनि उसके परिणाम से महीं बच सकते। ऐसे ही यदि दो का विचार कर दिया जाय । क्योंकि हमारे मन मैंगरेजों में पैमनस्य दो साय पर ये तयार से या मुसल्माम होमे ही से किसी सातीप काम- सद कर अपनी शवा कर पदसा नेमा पाहे पञ्चायती या समा-समार-सम्माधी पाहिम तो पे झाम्स में जाकर अपना पय पीतल कर प्रस्तर महीमा सकता।सककी सहाय सरापरने पर वारपर्य यद किसान फस या मगर में मल सगवामा हाम का मि संसार में मनुष्य निवास स्थान पर मनुष्य का मार्मिक भाग की तो सम्मापमा ही महा। शासन हारिक स्नेह रोता म धर्म पर दावा है, म केनिएनम बनाने परत है। उममें पहपृ.